29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

भगवान गणेश के बारे में जानिए वो सब जो आप जानना चाहते हैं..

भगवान गणेश के बारे में जानिए वो सब जो आप जानना चाहते हैं..

3 min read
Google source verification

image

Shyam Kishor

Sep 08, 2018

ganesh-chaturthi

भगवान गणेश के बारे में जानिए वो सब जो आप जानना चाहते हैं..

भगवान श्रीगणेश 33 कोटि देवताओं में से अति प्राचीन देवता हैं, ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है, यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है । अनेक पुराणों में गणेश का अद्भुत वर्णन मिलता है । पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है । प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेशजी की पूजा होती है । गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है । यहां जाने श्री गणेश के जीवन के बारे में ।

गणेश जी के अन्य नाम - गजानन, लम्बोदर, एकदन्त, विनायक, गणपति अष्टविनायक, विघ्न विनायक, गौरी नंदन आदि


पिता - शिवजी
माता पार्वती जी
बड़े भ्राता - कार्तिकेय जी
जन्म तिथि - भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था ।

विवाह - ऋद्धि सिद्धि दिव्य शक्तियों से हुआ ।
बीज मंत्र - ॐ गं गणपतये नमः ।
वाहन - शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है ।
प्रिय भोग प्रसाद - बेसन के लड्डू एवं मोदक ।
प्रिय पर्व-त्यौहार - गणेश चतुर्थी, गणेशोत्सव


प्राकृतिक स्वरूप वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं । गणेश जी के चारों हाथों में पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं । वे लालवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं । वे लाल चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें लाल रंग के पुष्प विशेष प्रिय हैं । धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है ।

ऐसे हैं हमारे श्रीगणेश जी

गजानन श्रीगणेश
हिन्दू धर्म के शास्त्र पुराणों में गणेश के संबंध में बहुत कुछ उल्लेख वर्णित है । कहा जाता हैं कि सूर्य पुत्र शनि की दृष्टि पड़ने से जब शिशु गणेश का सिर कटकर भस्म हो गया तो माता पार्वती अत्यंत दुःखी हो गई । माता पार्वती के दुःख को कम करने के लिए भगवान शिवजी ने एक हाथी के छोटे बच्चे का सिर काटकर श्री गणेश के शरीर से जोड़कर उसे पुनः जीवित कर दिया । इस प्रकार गणेश जी तभी से ‘गजानन’ के नाम से भी पूजे जाने लगे ।

एकदंत श्रीगणेश
एकदंत नाम के बारे कथा मिलती है कि एक भगवान शिव और माता पार्वती अपने शयन कक्ष में थे और द्वार रक्षा के लिए श्री गणेश जी बैठे थे । इतने में ऋषि परशुराम जी आए और उसी क्षण शिवजी से मिलने का आग्रह करने लगे तो उन्हें गणेश जी ने रोका, गणेशजी के रोके जाने पर ऋषि परशुराम जी क्रोधित हो गये और अपने फरसे से श्रीगणेश का एक दांत तोड़ दिया, तभी से गणेश जी एकदंत के नाम से भी पूजे जाने लगे ।

विघ्न विनायक श्रीगणेश
एक कथा के अनुसार आदि काल में एक यक्ष राक्षस लोगों को परेशान कर कष्ट पहुंचाता था, और वह राक्षस लोगों के किसी भी शुभ कार्यों को निर्विघ्न रूप से संपन्न नहीं होने देता था । तभी श्रीगणेश जी ने सभी भक्तों की करूण पूकार को सूनकर उस राक्षस से उनकी रक्षा कर, उनके सभी विघ्नों को हर लिया तभी से श्रीगणेश विघ्नेशवर या विघ्न विनायक के नाम से भी पूजा जाने लगे ।

लंबोदर श्रीगणेश
श्री गणेश के लंबे पेट होने के पीछे रहस्य यह भी है कि वे अपने माता-पिता भगवान शंकर और पार्वती से मिले वेद ज्ञान व संगीत, नृत्य और कलाओं को सीखने व अपनाने से श्री गणेश का उदर अनेक विद्याओं का भण्डार होने से लंबा हो गया । दूसरी ओर यह कहा जाता हैं कि श्री गणेश का लंबा पेट यह संकेत करता है कि जिस तरह पेट के कार्य पाचन द्वारा शरीर स्वस्थ्य व ऊर्जावान बनता है, उसी तरह जीवन को सुखद बनाना है तो व्यावहारिक जीवन में उठते-बैठते जाने-अनजाने लोगों से मिले कटु या अप्रिय बातों और व्यवहार को सहन करना यानी पचाना सीखें । इसलिए श्री गणेश की उपासना लंबोदर नाम से भी की जाती हैं ।

आर्येतर देवता गजबदन श्री गणेश
विद्वान् गणेश को आर्येतर देवता मानते हुए उनके आर्य देव परिवार में बाद में प्रविष्ट होने की बात कहते हैं, उनके अनुसार आर्येतर गण में हाथी की पूजा प्रचलित थी । इसी से गजबदन गणेश की कल्पना और पूजा का आरंभ हुआ । यह भी कहा जाता है कि आर्येतर जातियों में ग्राम देवता के रूप में गणेश का रक्त से अभिषेक होता था । आर्य देवमंडल में सम्मिलित होने के बाद सिन्दूर चढ़ाना इसी का प्रतीक है । प्रारंभिक गणराज्यों में गणपति के प्रति जो भावना थी उसके आधार पर देवमंडल में गणपति की कल्पना को भी एक कारण माना जाता है ।