
अनोखी है गणगौर की परंपरा, पति को नहीं देते प्रसाद
Gangaur Lyrics: गणगौर पूजा की अलग-अलग क्षेत्रों की परंपराएं हैं, इस दौरान की तरह के लोक गीत भी गाए जाते हैं। आइये जानते हैं गणगौर की अनोखी परंपरा के बारे में ..
गणगौर दो शब्दों गण और गौर से बना है। इसमें गण का अर्थ भगवान शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती से है। इस दिन अविवाहित कन्याएं और विवाहित स्त्रियां भगवान शिव, माता पार्वती की पूजा करती हैं। साथ ही उपवास रखती हैं।
कई क्षेत्रों में भगवान शिव को ईसर जी और देवी पार्वती को गौरा माता के रूप में पूजा जाता है। गौरा जी को गवरजा जी के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार श्रद्धाभाव से इस व्रत का पालन करने से अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियों के पति को दीर्घायु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
गणगौर पूजा में महिलाएं बालू या मिट्टी से गौरा जी बनाती हैं और उनका श्रृंगार करती हैं। बाद में इनका विधि-विधान से पूजन करते हुये लोकगीतों का गायन करती हैं। व्रतोत्सवसंग्रह के अनुसार इस दिन भोजन में मात्र एक समय दूध पीकर उपवास रखा जाता है।
मान्यता है कि इससे विवाहित स्त्री को अक्षय सुख प्राप्त होता है। इससे पति और पुत्र की उन्नति होती है। इस व्रत की विशेषता है कि इसे पति से छुपाकर किया जाता है। यहां तक कि गणगौर पूजा का प्रसाद भी पति को नहीं दिया जाता है।
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके व्रत और पूजा करती हैं। शाम को गणगौर की व्रत कथा पढ़ती और सुनती हैं। इस दिन को बड़ी गणगौर के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन नदी या सरोवर के पास बालू से माता गौरा की मूर्ति बनाकर उसे जल अर्पित किया जाता है। इस पूजन के अगले दिन देवी का विसर्जन किया जाता है। जिस स्थान पर गणगौर पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर या मायका और जिस स्थान पर विसर्जन होता है उसे ससुराल माना जाता है।
गणगौर पूजा के दिन महिलाएं मैदा, बेसन और आटे में हल्दी मिलाकर गहने बनाती हैं, जो माता पार्वती को अर्पित किया जाता है। इन गहनों को गुने कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, बड़ी गणगौर के दिन स्त्रियां जितने गुने माता पार्वती को अर्पित करती हैं, उतना ही अधिक धन-वैभव कुटुम्ब को प्राप्त होता है। पूजन संपन्न होने के बाद महिलाएं गुने अपनी सास, ननद, देवरानी या जेठानी को दे देती हैं।
राजस्थान में गणगौर का पर्व 18 दिन तक मनाया जाता है। यहां गणगौर उत्सव होलिका दहन के अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरम्भ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलता है। राजस्थान में स्त्रियां इस दिन ईसर जी और गवरजा जी का पूजन करती हैं। पूजन के दौरान दूब घास से जल छिड़कते हुए "गोर गोर गोमती" नामक पारम्परिक गीत गाती हैं।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने मायके आती हैं और अठारह दिनों के बाद ईसर जी उन्हें पुनः लेने के लिए आते हैं। चैत्र शुक्ल तृतीया को महिलाएं बड़ी बहन के रूप में गवरजा जी की विदाई करती हैं। इस समय लोकगीत गाए जाते हैं।
वहीं राजस्थान के अनेक क्षेत्रों विवाह के समय आवश्यक रूप से गणगौर पूजन किया जाता है। जबकि मध्यप्रदेश स्थित निमाड़ में गणगौर में भंडारे आयोजित किए जाते हैं। बाद में माता गवरजा की ईसर जी के साथ विदाई की जाती है।
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला, गौर का सोना का टीका
टीका दे, टमका दे, बाला रानी बरत करयो
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो, लाडू ले बीरा ने दियो
बीरो ले मने पाल दी, पाल को मै बरत करयो
सन मन सोला, सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा
जोड़ ज्वारा, गेंहू ग्यारा, राण्या पूजे राज ने, म्हे पूजा सुहाग ने
राण्या को राज बढ़तो जाये, म्हाको सुहाग बढ़तो जाये,
कीड़ी- कीड़ी, कीड़ी ले, कीड़ी थारी जात है, जात है गुजरात है,
गुजरात्यां को पाणी, दे दे थाम्बा ताणी
ताणी में सिंघोड़ा, बाड़ी में भिजोड़ा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो, सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो
लाडू ल्यो, पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो, हर-हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो
इस प्रकार सोलह बार बोल कर अन्त में बोलें- एक-लो , दो-लो …… सोलह-लो।
Updated on:
31 Mar 2025 10:11 am
Published on:
11 Apr 2024 01:22 pm
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