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भगवान शिव के पञ्चाक्षरी मंत्र एवं शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र का रहस्य ऐसे जानें

- पञ्चाक्षरी मंत्र व शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र की महिमा

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Deepesh Tiwari

Nov 13, 2022

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सनातन धर्म में भगवान शंकर यानि शिव को त्रिदेवों व आदिपंच देवों में से एक महत्वपूर्ण देव माना गया है। वहीं सोमवार के दिन के कारक होने के चलते इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष मानी जाती है, ऐसे में आज हम आपको सोमवार को देखते हुए भगवान शिव के पञ्चाक्षरी मंत्र और शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र के बारे में बता रहे हैं।

इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि वेदों और पुराणों में वर्णित जो सर्वाधिक प्रभावशाली और महत्वपूर्ण मंत्र हैं, उनमें से भगवान शिव का पञ्चाक्षरी मंत्र - "ॐ नमः शिवाय" अति श्रेष्ठ माना जाता है। इसे कई सभ्यताओं में महामंत्र भी माना गया है। ये पंचाक्षरी मंत्र, जिसमें पांच अक्षरों का मेल है, संसार के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जिसके बिना जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। कुछ लोगों द्वारा इसका जाप "नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय" के रूप में भी किया जाता है।

ॐ नमः शिवाय का मूल अर्थ है "भगवान शिव को नमस्कार", तो अगर एक प्रकार से देखें तो इस मंत्र का अर्थ बहुत ही सरल है, ठीक उसी तरह जिस प्रकार भोलेनाथ को समझना बहुत सरल है। साथ ही साथ ये मंत्र उतना ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली है जितने महादेव।

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इसे पञ्चाक्षरी मन्त्र इसलिए कहते हैं क्यूंकि श्री रुद्रम चमकम (कृष्ण यजुर्वेद) एवं रुद्राष्टाध्यी (शुक्ल यजुर्वेद) के अनुसार ये पांच अक्षरों से मिलकर बना है:
न - पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाला (ईश्वर के गुप्त रखने की शक्ति)
मः - जल का प्रतिनिधित्व करने वाला (संसार के दूसरा रूप)
शि - अग्नि का प्रतिनिधित्व करने वाला (स्वयं शिव का अंश)
वा - वायु का प्रतिनिधित्व करने वाला (ईश्वरीय अनुग्रह की शक्ति)
य - आकाश का प्रतिनिधित्व करने वाला (आत्मा का अनन्य रूप)

अन्य मंत्रों की तरह इसके जाप का कोई विशेष विधान नहीं है, हालांकि यदि इसका जाप 108 बार किया जाए यह अति शुभ माना जाता है। शिव पुराण में कहा गया है कि इस मंत्र की उत्पत्ति स्वयं महादेव ने प्राणिमात्र के सभी दुखों का नाश करने के लिए किया था। इस मंत्र को सभी मंत्रों का बीज भी कहा गया है। स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने कहा है कि "सात करोड़ महामंत्रों और असंख्य उपमंत्रों से ये मंत्र उसी प्रकार भिन्न है जिस प्रकार वृत्ति से सूत्र।" स्कन्द पुराण में कहा गया है कि:

किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।
यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।।

अर्थात्: "जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मंत्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!"

शास्त्रों में ये भी कहा गया है कि महिलाओं को ॐ नमः शिवाय की जगह "ॐ शिवाय नमः" मंत्र का जाप करना चाहिए। इसे भी पंचाक्षरी मंत्र ही माना गया है। वहीं यदि इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला के साथ किया जाए तो ये अत्यंत फलदायी होता है, क्यूंकि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भी महारुद्र के आंखों से ही हुई है। शैव संप्रदाय के अनुसार ॐ नमः शिवाय केवल एक महामंत्र नहीं बल्कि ये एक पूरा पंथ है।

कई जगह इसमें मतभेद है कि ॐ नमः शिवाय पञ्च अक्षरों का नहीं बल्कि ॐ के साथ मिला कर छः अक्षरों का बन जाता है, लेकिन विद्वानों का ये कहना है कि "ॐ" स्वयं में सम्पूर्ण है, जो परमात्मा का रूप है। इसलिए इसे केवल एक अक्षर के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस मंत्र की सबसे बड़ी बात ये है कि इसका जाप ब्राह्मण अथवा शूद्र कोई भी कर सकता है।

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कहा जाता है कि जो कोई भी पीपल के वृक्ष को छूकर पंचाक्षरी मंत्र का जाप करता है उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही भोजन से पहले 11 बार पंचाक्षरी मंत्र के जाप से भोजन भी अमृत बन जाता है।

जब सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा और नारायण का प्राकट्य हुआ तब अपने आप को जानने के लिए उन्होंने प्रश्न करना आरम्भ किया। तब महादेव एक अग्निलिंग के रूप में प्रकट हुए और उन्हें तप करने के लिए कहा। तब महादेव की स्तुति करते हुए ब्रह्मदेव और विष्णुदेव ने प्रथम "ॐ नमः शिवाय" इस पंचाक्षरी मंत्र का उद्घोष किया।

यही कारण है कि इसे आदिमंत्र भी माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने पञ्चाक्षरी मंत्र के विवरण स्वरुप "श्री शिव पञ्चाक्षर स्त्रोत्र" की रचना की, जिसे स्वयं शिवस्वरूप माना जाता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र ॐ नमः शिवाय की ही विस्तृत व्याख्या है। पञ्चाक्षरी मंत्र की तरह ही इसके पांच छंद हैं और अंतिम छंद के रूप में इसके महत्त्व को बताया गया है। आदि शंकराचार्य के विषय में कहा जाता है कि -

अष्टवर्षेचतुर्वेदी द्वादशेसर्वशास्त्रवित्षो।
डशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्।।

अर्थात: आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों में निष्णात हो गए, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, सोलह वर्ष की आयु में शांकरभाष्य और बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया।

तो चलिए इस स्तोत्र की महिमा को समझते हैं।

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै "न" काराय नमः शिवाय॥१॥

अर्थात: हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन, आप भस्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव, आपके 'न' अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है।

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवाय॥२॥

अर्थात: चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान, नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा पूजित हैं। हे शिव, आपके 'म' अक्षर द्वारा जाने वाले रूप को नमन है।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवाय॥३॥

अर्थात: हे धर्मध्वजधारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के मुखकमल को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपके 'शि' अक्षर से ज्ञात रूप को नमस्कार है।

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवाय॥४॥

अर्थात: देवगण एवं वसिष्ठ , अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र समान हैं। हे शिव !! आपके 'व' अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को नमस्कार है।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै "य" काराय नमः शिवाय॥५॥

अर्थात: हे यक्ष स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य चिदाकाश रूपी अम्बर धारी शिव !! आपके 'य' अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥६॥

अर्थात: जो कोई भगवान शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य उनके समक्ष पाठ करता है वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीशिवपंचाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥७॥

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