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माता अन्नपूर्णा अवतरण दिवस: जानें देवी माता की पूजा विधि, कथा और महत्व

Annapurna Jayanti 2022: माता अन्नपूर्णा को माता पार्वती का ही स्वरूप माना जाता है अत: इस दिन माता पार्वती की पूजा-अराधना की जाती हैं।

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Deepesh Tiwari

Dec 04, 2022

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Annapurna's descent day 2022: सनातन धर्म में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व हर वर्ष हिन्दू पंचांग के नौवें माह यानि मार्गशीर्ष (अगहन) की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यानि 2022 में यह पर्व 8 दिसंबर को मनाया जाएगा। माता पार्वती का ही स्वरूप माता अन्नपूर्णा की जयंती पर माता पार्वती की पूजा-अराधना की जाती हैं। जो भी जातक इस दिन देवी मां की पूर्ण भक्ति,श्रृद्धा व विश्वास से माता पार्वती की पूजा करता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार उसके जीवन में कभी अन्न-धन की कमी नहीं होती।

अन्नपूर्णा जयंती की पूजा विधि :Goddess Annapurna mata Puja Vidhi
अन्नपूर्णा जयंती के दिन सुबह सूर्योदय के समय उठकर स्नान करके पूजा का स्थान और रसोई को अच्छी तरह साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से रसोई के चूल्हे की पूजा करें। फिर मां अन्नापूर्णा की प्रतिमा को किसी चौकी पर स्थापित करें और फिर एक सूत का धागा लेकर उसमें 17 गांठें लगा लें।

उस धागे पर चंदन और कुमकुम लगाकर मां अन्नपूर्णा की तस्वीर के सामने रखकर 10 अक्षत अर्पित करें। और फिर अन्नपूर्णा देवी की कथा पढ़ें। इसके बाद माता से अपनी भूल की क्षमा याचना करते हुए परिवार पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करें। फिर सूत के धागे को घर के पुरुषों के दाएं हाथ जबकि महिलाओं के बाएं हाथ की कलाई पर बांधें। वहीं पूजन के बाद किसी गरीब को अन्न का दान करें।

देवी माता अन्नपूर्णा की कथा : Goddess Annapurna mata katha
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई और लोग भूखे मरने लगे। त्रस्त होकर लोगों ने ब्रह्मा, विष्णु से प्रार्थना की। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु ने शिव जी को योग निद्रा से जगाया और सम्पूर्ण समस्या से अवगत कराया। समस्या के निवारण के लिए स्वयं शिव ने पृथ्वी का निरीक्षण किया। फिर माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप लिया और पृथ्वी पर प्रकट हुईं। इसके पश्चात शिव जी ने भिक्षुक का रूप रखकर अन्नपूर्णा देवी से चावल भिक्षा में मांगे और उन्हें भूखे लोगों के बीच बांटा।

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इसके बाद पृथ्वी पर अन्न जल का संकट खत्म हो गया। जिस दिन माता पार्वती अन्न की देवी के रूप में प्रकट हुईं थीं, उस दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन था। तब से इस दिन को माता अन्नपूर्णा के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

अन्नपूर्णा जयंती का महत्व : Importance of Goddess Annapurna descent
अन्नपूर्णा जयंती का उद्देश्य ये है कि अन्न से हमें जीवन मिलता है, इसलिए कभी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए और न ही इसकी बर्बादी करनी चाहिए। अन्नपूर्णा जयंती के दिन रसोई की सफाई करनी चाहिए और गैस, स्टोव और अन्न की पूजा करनी चाहिए. साथ ही जरूरतमंदों को अन्न दान करना चाहिए। मान्यता है कि इससे माता अन्नपूर्णा अत्यंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा बनाकर रखती हैं। ऐसा करने से परिवार में हमेशा बरक्कत बनी रहती है, साथ ही अगले जन्म में भी घर धन धान्य से परिपूर्ण रहता है।