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Skand Shashthi 2023: यह है स्कंद षष्ठी की कथा, मुरुगन की पूजा से पूरी होती है मनोकामना

Skand Shashthi 2023 आज 26 जनवरी को दोपहर बाद शुरू हो रही है। इस अवसर पर हम आपको शिव पुत्र स्कंद की कथा सुनाते हैं। मान्यता है षष्ठी के दिन ही स्कंद का जन्म हुआ था और भगवान स्कंद की पूजा से हर मनोकामना पूरी होती है। मुरुगन यानी स्कंद के नाम पर ही माता पार्वती को स्कंद माता भी कहा जाता है।

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Pravin Pandey

Jan 26, 2023

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Skand Shashthi 2023: कथा के अनुसार दक्ष के यज्ञ में सती के भस्म होने के बाद भगवान शिव वैरागी हो गए। वे तपस्या में लीन हो गए, जिससे सृष्टि शक्तिहीन हो गई। इससे इस समय दैत्य तारकासुर ने अपना आतंक फैला दिया, देवताओं की पराजय हुई। धरती हो या स्वर्ग सब जगह अन्याय और अनीति का बोलबाला हो गया। इससे देवताओं ने तारकासुर के अंत के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। इस पर ब्रह्माजी ने बताया कि शिव पुत्र ही तारकासुर का अंत कर सकेगा।


इंद्र और अन्य देवता भगवान शिव के पास जाते हैं और अपनी समस्या बताते हैं। बाद में भगवान शिव पार्वती के अनुराग की परीक्षा लेते हैं, पार्वती की तपस्या के बाद शुभ घड़ी में शिव पार्वती का विवाह होता है। इसके बाद कार्तिकेय का जन्म होता है और सही समय पर कार्तिकेय तारकासुर का वध कर देवताओं का स्थान दिलाते हैं। मान्यता है कि कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि पर हुआ था, इसलिए षष्ठी तिथि पर कार्तिकेय की पूजा की जाती है।

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स्कंद षष्ठी तिथिः स्कंद षष्ठी तिथि की शुरुआत 26 जनवरी सुबह 10.28 बजे हो रही है और यह तिथि 27 जनवरी को सुबह 9.10 बजे संपन्न हो रही है। जब पंचमी तिथि समाप्त होती है और षष्ठी तिथि सूर्योदय व सूर्यास्त के बीच शुरू होती है तो पंचमी और षष्ठी दोनों संयुग्मित हो जाती है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार ऐसी स्थिति में इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रतम के लिए चुना जाता है।


पुरोहितों के अनुसार सभी षष्ठी भगवान मुरुगन को समर्पित है, लेकिन चंद्रमास कार्तिका के दौरान पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की षष्ठी सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान भक्त छह दिन उपवास रखते हैं, जो सूर्यसंहारम के दिन तक चलता है। सूर्यसंहारम के अगले दिन को तिरुकल्याणम के नाम से जाना जाता है।