6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

इसलिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत, पढ़ें पूरी कथा

व्रत से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद

3 min read
Google source verification

image

Shyam Kishor

May 19, 2020

इसलिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत, पढ़ें पूरी कथा

इसलिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत, पढ़ें पूरी कथा

हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को महिलाएं वट सावित्र का व्रत रखकर पूजा अर्चना करती है। वट सावित्री का व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ मास की अमावस्या एवं दक्षिण भारत की महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस देवी सावित्री ने यमराज से अपने मरे हुए पति के प्राण पुनः वापस मांगकर उन्हें जीवित कर लिया था। तभी से विवाहित सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना से यह व्रत रखती है।

वट सावित्री कथा

पौराणिक, प्रामाणिक एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार, यह जानते हुए भी देवी सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया था कि उनके होने वाले पति अल्पायु है। फिर भी सावित्री ने यह कहते हुए सत्यवान से विवाह किया था कि मैं एक भारतीय हिन्दू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं और विवाह कर लिया।

बुधवार को गणेश जी के चरणों में चढ़ा दें यह चीज, फिर देखें चमत्कार ही चमत्कार

विवाह के कुछ समय बाद अल्पायु सत्यवान की मृत्यु हो गई, देवी सावित्री ने एक वट वृक्ष के नीचे अपनी गोद में मृत पति के सिर को रखकर उसे लिटा दिया। थोड़ी देर बाद ही सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ वहां आ पहुंचे। मृत सत्यवान की आत्मा को यमराज अपने साथ दक्षिण दिशा की ओर लेकर जाने लगे। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ी। सावित्री तो अपने पीछे आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी सावित्री तुम्हारा और तुम्हारे पति का साथ केवल पृथ्वी तक ही था। इसलिए अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है, यही मेरा पत्नी धर्म है।

देवी सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर मांगना चाहोगी। इतना सुनते ही देवी सावित्री ने पहले वर में अपने अंधे सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, दूसरे वर में ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा और एवं तीसरे वर में अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। देवी सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा।

‍सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया। तभी से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं उपवास रखकर, विधिवत पूजन करके अपनी पति की लंबी आयु की कामना यमराज से करती है।

**********