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Dussehra 2021: विजयदशमी (दशहरा) को लेकर क्या कहते हैं भगवान शिव व श्रीकृष्ण, क्या आप जानते हैं? इस कथा से समझें

आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है विजयादशमी यानि दशहरा

भोपालOct 15, 2021 / 10:28 am

दीपेश तिवारी

Dussehra Special

Vijayadashmi Special

असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय का महापर्व विजयादशमी यानि दशहरा हर साल आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार आज के ही दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। जिसके बाद से ही दशहरा मनाने की परंपरा शुरु हुई। इस दिन रावण दहन भी किया जाता है।

ऐसे में इस बार ये महापर्व यानि दशहरा शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2021 को मनाया जा रहा है। इस दिन मां भगवती और भगवान श्री राम की भक्त विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन मां दुर्गा और भगवान राम की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सकारात्मकता का प्रसार होता है। वहीं विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन का भी विधान है।

Vijaydashmi 2021 DUSSEHRA 2021
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वर्ष 2021 में पूजा का शुभ मुहूर्त
साल 2021 में विजयदशमी पूजा का शुभ मुहूर्त शुक्रवार,15 अक्टूबर को 02:02 PM से 02:48 PM तक है। माना जाता है कि इस काल में मां भगवती और भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ ही सभी कष्टों का भी निवारण होता है।

ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कथा के बारे में बता रहे हैं, जहां माता पार्वती के द्वारा दशहरे के संबंध में प्रश्न पुछने पर भगवान शिव ने उन्हें इनका जवाब देते हुए उनकी जिज्ञासा शांत की थी तो वहीं पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण ने विजयदशमी के जुड़े रहस्यों के बारे में बताया था।

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lord shiv

कथा: कहा जाता है कि एक बार पार्वती जी ने दशहरे के त्यौहार के प्रचलन और फल के विषय में शिवजी से प्रश्न किया। तब भगवान शंकर ने कहा कि हे देवी! आश्विन शुक्ल दशमी को संध्याबेला में तारोदय के समय ‘विजय’काल होता है।

शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए राजा को इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग होना विशेष शुभ माना गया है। भगवान राम ने इसी समय लंका पर चढ़ाई की थी। इसलिए क्षत्रियों के लिए यह परम पवित्र और विशिष्ट त्यौहार है। शत्रु से युद्ध करने की इच्छा न होने पर भी इसी का में राजाओं को सीमा का उल्लंघन करना चाहिए। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष धारण किया था।

भगवान शिव के ऐसे वचन सुनकर माता पार्वती जी ने पूछा- शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब धारण किया था और भगवान रामचंद्रजी ने कब, कैसी प्रिय वाणी कही थी? हे भगवन! कृपया समझाइये।

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Shri Ram and Shiv

इस पर भगवान शिव ने जवाब देते हुए कहा कि कौरव पक्षीय दुर्येधन ने पांडवों को द्यूतक्रीड़ा (जुए) में पराजित करके 12 वर्ष के वनवास के साथ 13वें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त रखी थी। अर्थात वे 12 वर्षों तक प्रकट रूप में वन में स्वच्डंद विचरण कर सकते थे, लेकिन एक वर्ष का अज्ञातवास रहेगा। 13वें वर्ष यदि वे पहचाने जाते तो उन्हें पुन: 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता।

इसी अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना धनुष शमी वृक्ष पर रखा था और स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के यहां नौकरी कर ली थी। विराट के पुत्र ने जब गौ रक्षा के लिए अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने गांडीव (हथियार)को उतारकर शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त की थी। इसी प्रकार शमी वृक्ष ने अर्जुन के हथियारों की रक्षा की थी। वहीं विजयदशमी के दिन श्री रामचंद्रजी द्वारा लंका पर चढ़ाई के लिए प्रस्थान करते समय भी शमी वृक्ष ने विजय कामना की थी। इसलिए विजयकाल में शमी पूजन का विधान है।

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shri krishna

एक बार पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि ‘राजन! विजयदशमी के दिन राजा को वस्त्राभूषणों से स्वयं अलंकृत होकर अपने अनुचरों और हाथी-घोड़ों का श्रृंगार करना चाहिए। वाद्ययंत्रों सहित मंगलाचार करना चाहिए और पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान सीमोल्लंघन करना चाहिए।

वहां वास्तु, अष्ट दिग्पाल और पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए। ब्राह्मणों की पूजा करके, हाथी, घोड़े ,अस्त्र-शस्त्रादि का निरीक्षण करना चाहिए। तब कहीं वापस अपने महल लौटना चाहिए। जो राजा हर वर्ष यह सब क्रिया यानि ‘विजया’ करता है वह शत्रु पर सदैव विजय प्राप्त करता है।’

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