स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली का ही परिणाम है कि शहर से लेकर जिले भर में बेखोफ बगैर नियम कानून के निजी अस्पतालों का संचालन किया जा रहा है। साथ ही स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से अनाधिकृत पैथोलाजी लैब भी मरीजों के साथ कथित लूट का खुला सेंटर बन चुकी हैं। हाल ये है कि इनकी जांच रिपोर्ट भी रामभरोसे है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में ये लैब जमकर चांदी कूट रहे हैं। ये सीधे तौर पर मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। अनुमान के अनुसार जिले भर में लगभग 150 लैबों का संचालन किया जा रहा है। जिनमें से केवल स्वास्थ्य विभाग में 18 लैबों का पंजीयन है साथ ही 5 लैबों का पंजीयन पेंडिंग है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन लैबों पर काम करने वाला स्टॉफ भी नौसिखए होते हैं। जिन्हें केवल रक्त निकलना और एवरेज रिपोर्ट का प्रिंट निकलना आता है। इन लैबों की जांच रिपोर्ट भी कई बार संसय में डाल देती है। कई बार शहर में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां एक मरीज ने दो अलग-अलग लैब पर टेस्ट कराया और दोनों की रिपोर्ट अलग-अलग आई।
क्या एक और अनहोनी के इंतजार में स्वास्थ विभाग पिछले कुछ महीनों से शहर में प्रसूताओं सहित अन्य मरीजों के ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिनमें उनकी इलाज के दौरान या रेफर करने के दौरान मौत हो चुकी है। मृतकों के परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर गलत इलाज का आरोप लगाए। फिर भी स्वास्थ्य विभाग ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई करने से क्यों बच रहा है। हां दिखावे के लिए स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार एक-दो अस्प्तालों पर जाकर निरीक्षण जरूर कर आते हैं लेकिन कार्रवाई नहीं करते। अब क्या स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार और कोई बड़ी अनहोनी के इंतजार में हैं?
बिना मानकों के संचालित निजी अस्पताल सरकार ने अस्पतालों में लगातार बढ़ते हादसों को देखते हुए मानकों पर भी सख्त है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन या नवीनीकरण के लिए फायर विभाग, प्रदूषण विभाग की एनओसी जरूरी कर दी है। साथ ही नियमानुसार बायो वेस्ट को लेकर भी बेहतर व्यवस्था की जाती है। अस्पताल में पार्किंग के अलावा मरीजों के अन्य सुविधाओं का भी ख्याल रखा जाना होता है। इसके बावजूद अधिकतर निजी अस्पताल बिना मानकों के ही संचालित हो रहे हैं। लेकिन यह सब देखकर भी स्वास्थ्य विभाग चुपचाप बैठा हुआ है।
नियम विरुद्ध संचालित हैं मेडिकल सेंटर अधिकांश मल्टी स्पेशिलिटी हॉस्पिटलों में मेडिकल स्टोर नियम विरुद्ध संचालित हैं। पंजीयन किसी के नाम और संचालित कोई और कर रहा है। मेडिकल सेेंटरों पर काम करने वाले फार्मासिस्ट भी नहीं होते। नियमानुसार ऐसे लोगों के खिलाफ एफआइआर होना चाहिए, लेकिन निरीक्षण के दौरान कुछ दिन के लिए लाइसेंस सस्पेंड करके फिर से उसी स्थिति में मेडिकल का संचालन करने लगते हैं। जिसके चलते हॉस्पीटल संचालकों के हौंसले बुलंद हैं। कुछ हॉस्पीटल ऐसे भी हैं जिनके पास मेडिकल नहीं हैं, फिर भी दवा संग्रहित कर रहे हैं।
यह हाल निजी अस्पतालों का – अधिकतर हॉस्पिटलों का नहीं रजिस्ट्रेशन – बगैर फायर एनओसी के संचालित अधिकतर निजी अस्प्ताल – सेगरीगेशन के मान से नहीं अस्पतालों मेंं डस्टबिन। – नर्सिंग स्टाफ निर्धारित योग्यता व मापदण्डानुसार न होकर अप्रशिक्षित ट्रेनी नर्सिंग स्टाफ कार्यरत।
– एक्स रे मशीन बिना पंजीयन संचालित। – अनुमति से अधिक बेड पर भर्ती किए जा रहे मरीज। – मेडिकलों पर फार्मासिस्ट नहीं रहते। – अस्पतालों में संचालित लैबों में विशेषज्ञ नहीं है।
– पार्किंग की जगह तलघर में संचालित हो रहे अस्पताल।