बाड़ी. प्रकृति का हर स्थान अपने आप में इतिहास को संजोएं हुए होता है। ऐसे में चाहे वह ऐतिहासिक इमारतें हो या खंडहर हो रहे जर्जर भवन। हर किसी का इतिहास उसकी कहानी कहता है। हम बात कर रहे हैं झील किनारे उस महल की, जिसे 17वीं सदी के मुस्लिम शासक जहांगीर के मनसवदार ने अपने राजकुमार के शिकार और विहार के लिए बनवाया था। आज हालांकि झील के चारों ओर से मोटी दीवार बनाकर पानी को सुरक्षित किया गया है।
मुगल शासक शाहजहां के लिए बने तालाबशाही को पर्यटन मानचित्र पर लाने की दरकार
-14 वीं सदी में बनी थी, जिस पर बाद में बनाया गया महल
-तालाबशाही से रामसागर तक बना सकता है पर्यटन क्षेत्र
सरकार का नहीं कोई ध्यान
बाड़ी. प्रकृति का हर स्थान अपने आप में इतिहास को संजोएं हुए होता है। ऐसे में चाहे वह ऐतिहासिक इमारतें हो या खंडहर हो रहे जर्जर भवन। हर किसी का इतिहास उसकी कहानी कहता है। हम बात कर रहे हैं झील किनारे उस महल की, जिसे 17वीं सदी के मुस्लिम शासक जहांगीर के मनसवदार ने अपने राजकुमार के शिकार और विहार के लिए बनवाया था। आज हालांकि झील के चारों ओर से मोटी दीवार बनाकर पानी को सुरक्षित किया गया है। इमारत की जर्जर दीवारों को भी मरम्मत कर सुरक्षित किया जा रहा है, लेकिन ऐतिहासिक झील और उसके तालाब के इतिहास को लेकर पर्यटकों को लुभाने का ना तो सरकार कोई प्रयास कर रही है और ना ही संबंधित पुरातत्व विभाग।
बाड़ी उपखंड मुख्यालय से करीब 4 किलोमीटर पूर्व दिशा में नेशनल हाईवे 11बी के किनारे पर स्थित है ऐतिहासिक तालाब शाही। बताया जाता है कि इस तालाब शाही पर महल का निर्माण 17वीं सदी में मुगल शासक जहांगीर के मनसबदार साले खां ने आखेट के प्रेमी राजकुमार शाहजहां के लिए कराया था। महल भी एक संतर में ना बनाकर अलग अलग बनाए गए। जिनकी सभी खिड़कियां तालाब रूपी झील की ओर खुलती थी। बताया जाता है कि यहां तालाब पूर्व में ही बना हुआ था।जिसे फिरोज शाह ने 14वीं और 15वीं शताब्दी के बीच बनवाया था। ऐसे में झील किनारे महल बनाने का काम मनसबदार साले खां ने किया। बाद में इस ऐतिहासिक इमारत का उपयोग बफर जोन के रूप में बनी धौलपुर स्टेट के राजा और महाराजा ने अपने आहार विहार के लिए किया और कई बार यहां पर उन्हें घूमते हुए भी देखा गया। जब देश आजाद हुआ इस इमारत में कुछ समय सेना को भी रखा गया। वर्तमान में भी यहां आरएसी की एक टुकड़ी रहती है। साथ में पुलिस का सदर थाना भी इसी इमारत के एक भाग में बना हुआ है।
तालाब किनारे बनी इस ऐतिहासिक इमारत को लेकर पर्यटक यहां आएं और यहां के लोगों को कुछ रोजगार मिले। साथ में इमारत की ख्याति दूर दूर देशों तक फैले, इसको लेकर ना तो राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया और ना इसकी देखरेख करने वाले संबंधित पुरातत्व विभाग ने। विभाग के अधिकारी यहां केवल कभी कभी मौज मस्ती के लिए जरूर आते हुए देखे जा सकते है। विभाग का एक बोर्ड भी कबाड़ में डला हुआ देखा जा सकता है।
यह है विशेषता
तालाब शाही की झील की एक और विशेषता यह है कि यह शांत है और शोरगुल एवं प्रदूषण से दूर है। ऐसे में इस तालाब के किनारे नवंबर से मार्च के महीने तक विविध प्रकार की पक्षियों की प्रजातियां देखी जा सकती हैं। कुछ विदेशी पक्षी यहां प्रवास भी करते हैं। तालाब शाही से जो पानी ओवरफ्लो होकर निकलता है। वह आरटी बांध में होकर रामसागर बांध तक जाता है। यह पूरा क्षेत्र पानी से हर वक्त सरोवर रहता है। ऐसे में पक्षी केवल तालाब शाही पर ही नहीं, बल्कि हुसैनपुर, आरटी और रामसागर बांध तक अपना बसेरा बनाते हैं। जिनको देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों को यहां आकर्षित किया जा सकता है। पक्षी प्रेमियों का कहना है कि यहां जो पक्षी प्रवास करते हैं, वह भरतपुर घना पक्षी विहार में भी नहीं देखे जाते।