scriptवायु प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, आंखों में जलन व बार-बार आती हैं छींके | Air pollution Hazards: Development of asthma, bronchitis, emphysema | Patrika News

वायु प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, आंखों में जलन व बार-बार आती हैं छींके

locationजयपुरPublished: Dec 14, 2019 04:08:12 pm

Pollution Hazards: हवा में मुख्य रूप से ऑक्सीजन व नाइट्रोजन होती है लेकिन बढ़ते औद्योगिकीकरण, वाहनों के प्रदूषण से जहरीली गैसें कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, लेड के मिलने से हवा प्रदूषित हो गई है…

Pollution Hazards

वायु प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, आंखों में जलन व बार-बार आती हैं छींके

Pollution Hazards: हवा में मुख्य रूप से ऑक्सीजन व नाइट्रोजन होती है लेकिन बढ़ते औद्योगिकीकरण, वाहनों के प्रदूषण से जहरीली गैसें कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, लेड के मिलने से हवा प्रदूषित हो गई है।सांस लेते हैं तो फेफड़े में रक्त की नलिकाओं में एक तरफ से शुद्ध हवा रक्त में जाती है, दूसरी ओर से अशुद्ध हवा फिल्टर होकर बाहर आती है। लेकिन जब धूल कण प्रवेश करते हैं तो नलिकाओं की परत में सूजन आ जाती है। इससे सांस में दिक्कत, अस्थमा, सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव प्लमोनरी डिजीज) व बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती होती है। वायु प्रदूषण से चिड़चिड़ापन, गले में खरास, आंखों में जलन, छींकें आती हैं। व्यवहार में बदलाव आता है। आइए जानते हैं वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावाें के बारे में :-
तीन तरह से होती तकलीफ
यह तीन तरह से शारीरिक गतिविधि में दिक्कत पैदा करता है। नाक में एलर्जी से छींक, नाक बंद, सिरदर्द, गले में एलर्जी से ब्रोंकाइटिस, गला खराब, कफ बनता है। फेफड़े में एलर्जी से सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द होता है। डॉक्टर मरीज से उसके आसपास के बारे में, मेडिकल हिस्ट्री जानते हैं। रक्त व प्लमोनरी फंक्शन टेस्ट से फेफड़ों की क्षमता जांचते हैं। डिफ्यूजन टेस्ट से एक सेकंड में फेफड़े की हवा निकालने की क्षमता व स्मो चेक से इसमें प्रदूषित हवा के स्तर की जांच करते हैं।
फेफड़े का लचीलापन कम होता
वायु प्रदूषण में केमिकल, लेड, क्रोमियम की वजह से मरीज में स्किन कैंसर, फेफड़े का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। मौसम में बदलाव से अस्थमा, दमा में कफ तेजी से बढ़ता है। साथ ही, फेफड़े में लचीलापन कम हो जाता है। इसी वहज से अस्थमा अटैक बढ़ जाता है। घर से बाहर तभी निकलें जब धूप हो। सर्दी, शीतलहर व कोहरे में निकलने से बचें। सुबह-शाम घर में ही रहें। कमरा हवादार हो। बाहर निकलें तो मुंह पर गीला सूती कपड़ा बांधकर निकलें। मरीजों को बताया गया मेडिकल मास्क लगाएं। यदि बाजार से लेते हैं तो ट्रिपल लेयर मास्क लें। गरमा-गरम खाना खाएं।
इलाज से ज्यादा बचाव जरूरी
स्टीम थैरेपी : एलर्जी से प्रभावित मरीज के इलाज में दवाओं का ज्यादा रोल नहीं होता है। प्रदूषित हवा से बचना होगा। घर में वायु प्रदूषण से बचने के उपाय करें। फेफड़े में जमा कफ निकालने के लिए भाप लेने से निकल सकता है। दवाओं से खांसी, खरास से आंशिक आराम मिलता है।
योग-प्रणायाम व व्यायाम : बैठे व्यक्ति को ऑक्सीजन की कम जरूरत होती है। व्यायाम, योग करते समय ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत होती है। फेफड़े फिल्टर होते हैं। हानिकारक कण बाहर निकलते हैं। ध्यान रखें व्यायाम, योग व प्राणायम प्रदूषण मुक्त स्थानों पर करें।
इलेक्ट्रिक उपकरण से भी दिक्कत
घरों में वेंटिलेशन सही तरीके से नहीं होने, इलेक्ट्रिक उपकरण फ्रिज, एयरकंडीशनर से वायु प्रदूषण बढ़ता है। उपकरणों की नियमित सर्विसिंग भी जरूरी है। अन्यथा इससे नुकसान हो सकता है।
यूं करें बचाव
तुलसी, मनी प्लांट व पॉम ट्री लगाएं।
ध्यान रखें घर में भी धूम्रपान न करें।
फ्रिज, ओवन का नियमित रखरखाव करें।
कीटनाशकों का उपयोग घर में कम करें।
घर में सीलन, अनुपयोगी वस्तुएं हटाएं।
आयुर्वेद में इलाज
प्रदूषण को अवशोषित करने के लिए हर घर में तुलसी का पौधा लगाएं। रोजाना 10-15 मिली. तुलसी का जूस भी पीएं।
त्रिफला : प्रदूषण से बिगड़े त्रिदोष का बैलेंस बैलेंस ठीक करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। रात में शहद-त्रिफला लेना फायदेमंद होता है।
नीम : नीम की पत्ती उबालकर उसके पानी से नहाएं। सप्ताह में नीम की दो-तीन पत्तियां खाएं। बैक्टीरिया खत्म होते हैं।
घी : सोते समय नाक में दो बूंद गाय का घी डालें। दो चम्मच घी खाएं। हानिकारक तत्त्व फेफड़ों, लिवर में जमा नहीं होंगे।
अदरक : सांस से जुड़ी समस्याओं में फायदेमंद है। सलाद, चाय में डालकर भी ले सकते हैं। ज्यादा अदरक न लें।
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