अध्ययनों के अनुसार प्रत्येक 1000 महिलाओं में से हर 17वीं महिला दमा से पीड़ित होती है। माहवारी से ठीक पहले लड़कियों के हार्मोन में बदलाव होने से अस्थमा अटैक का खतरा रहता है। वहीं, मेनोपॉज के समय महिलाओं में अस्थमा की आशंका दोगुनी हो जाती है।
अस्थमा, सांस से जुड़ी बीमारी है जो फेफड़ों से जाने वाली श्वसन नलियों में सूजन पैदा करती है। सांस लेने में तकलीफ, छाती में अकड़न व रात में खांसी आना इसके लक्षण हैं।
अस्थमा से प्रभावित गर्भवती और फीडिंग मदर के लिए इनहेलर थैरेपी सुरक्षित होती है क्योंकि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। अस्थमा ग्रसित महिला को चाहिए कि वह माहवारी के दौरान होने वाले लक्षणों पर ध्यान दें और स्थिति गंभीर हो तो विशेषज्ञ से संपर्क कर उनके बताए अनुसार दवाएं ले।
विशेषज्ञाें के मुताबिक जिन महिलाओं को अस्थमा की समस्या होती है उन्हें फीमेल हार्मोन की वजह से पुरुषों के मुकाबले ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। उन्हें अस्थमा बढ़ाने वाली चीजों जैसे खाना बनाते समय बॉयोमास ईंधन, स्मोकिंग, शराब से बचने और पर्यावरणीय बदलावों के अलावा हर माह होने वाले बदलावों के लिए भी सतर्क रहना चाहिए।
अस्थमा से प्रभावित महिला का सामान्य प्रसव हो सकता है और वह अपने बच्चे को फीड भी करा सकती है। साथ ही स्तनपान कराने पर मां से बच्चे में अस्थमा नहीं जाता है।