इसेे डैनवैक्स थैरेपी भी कहते हैं। इसमें रोगी की इम्युनिटी स्वाभावित रूप से बढ़ जाती है। यह इम्युनोथैरेपी ( Immunotherapy ) है जिसमें शरीर के रक्त में प्रवाहित होने वाली श्वेत रुधिर कोशिकाओं को कैंसर प्रतिरोधी सेल-डेन्ड्रिटिक में बदल देते हैं। ये कैंसर से लडऩे में सहायता करती हैं। जैसा कि इस विधि में श्वेत रुधिर कोशिकाओं का कल्चर टैस्ट होता है इसलिए कैंसर के गंभीर प्रकार में यह प्रभावी है। इसे कैंसर के इलाज के दौरान प्रयोग होने वाली थैरेपी जैसे कीमो, रेडियो आदि के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे कोई दिक्कत नहीं आती है।
तीन माह तक चलने वाली डेन्ड्रिटिक सेल थैरेपी में रोगी को दो हफ्ते के अंतराल में 6 डोज देते हैं। खास बात है कि प्रारंभिक चरण के अलावा कैंसर की लास्ट स्टेज वाले रोगी के लिए भी यह उपयोगी है। यह पद्धति बीमारी को फैलने से रोकती है। ऐसे में रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार की गुंजाइश बढ़ जाती है। लिवर, ब्रेन, पेन्क्रियाज, ब्रेस्ट व ओवेरियन कैंसर में यह ज्यादा प्रभावी है।
कई देशों में बे्रस्ट, फेफड़े, मायलोमा, प्रोस्ट्रेट और किडनी के कैंसर के इलाज में इस पद्धति का इस्तेमाल किया जा रहा है। अमरीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस पद्धति से इलाज बहुत पहले शुरू हो गया था। भारत में इसे आए कुछ ही साल हुए हैं। विश्व के कई और विकसित देशों (जिनमें से एक जर्मनी भी है) में इस पद्धति पर निर्धारित दवाई को कैंसर के उपचार के लिए अनुमति दी गई है। आमतौर पर देशवासी विदेश जाकर इलाज लेते हैं लेकिन अब भारत में भी यह इलाज मिल सकेगा। दुष्प्रभाव कम व नतीजे ठीक होने से यह प्रभावी है।