युवावस्था में गर्भाशय ग्रीवा या ‘सर्विक्स’ कैंसर के मामले कम होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कैंसर एचपीवी वायरस के संक्रमण से होता है जो शारीरिक संबंध के दौरान महिला के शरीर में प्रवेश करता है। कम उम्र में यदि यह संक्रमण होता भी है तो ज्यादातर मामलों में यह स्वत: खत्म हो जाता है। यदि खत्म न हो तो कैंसर का रूप लेने में इसे एक साल या इससे अधिक समय लग सकता है। वहीं यूट्रस की गांठें किशोरावस्था व युवावस्था में भी पाई जाती हैं। इनमें से कुछ कैंसर की भी हो सकती हैं। इलाज जरूरी है।
शुरुआती अवस्था में जांचों से इस कैंसर से बच सकते हैं। इस स्टेज पर इलाज संभव है। वर्तमान में सर्विक्स कैंसर से बचाव के लिए एचपीवी (ह्यूमन पैपीलोमा वायरस) वैक्सीन उपलब्ध है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 21 वर्ष से अधिक उम्र की हर महिला को पैप स्मीयर टैस्ट करवाना चाहिए। कोई खराबी न आने पर इसे तीन वर्ष बाद पुन: करवाते हैं। वहीं 30 की उम्र के बाद इस टैस्ट के साथ एचपीवी-डीएनए जांच करवाते हैं। इनके सामान्य पाए जाने पर 5 साल बाद पुन: करवाते हैं। कैंसर की पुष्टि होने पर कॉल्पोस्कोपी व बायोप्सी करते हैं। यदि परिवार में स्तन कैंसर की हिस्ट्री है तो डॉक्टरी सलाह पर साल में एक बार मेमोग्राफी करवानी चाहिए।
जननांगों से जुड़े विभिन्न कैंसर में से ओवरी के कैंसर में मृत्यु दर अधिक होती है। शुरुआती अवस्था में इस कैंसर की पहचान करने वाले टैस्ट उपलब्ध न होने से मामले गंभीर स्थिति में सामने आते हैं। अंडाशय में कोई गांठ महसूस हो (विशेषकर किशोरावस्था व मेनोपॉज के बाद) या जी घबराने, पेट में भारीपन, कब्ज आदि को सामान्य मानकर न टालें। एक माह तक यदि ये लक्षण महसूस हों तो सतर्क हो जाना चाहिए। साथ ही घर में पहले से यदि किसी को ओवरी या ब्रेस्ट कैंसर है तो उनमें भी यह हो सकता है।