
सीओपीडी से मरने वालों की संख्या भारत में यूएस व यूरोप से चार गुना ज्यादा हो गई है।
सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्ट्रकटिव पल्मोनरी डिजीज) यानी दमा एक प्रोग्रेसिव लंग डिजीज है, जिसे 'फास्ट किलर' भी कहते हैं। सीओपीडी से मरने वालों की संख्या भारत में यूएस व यूरोप से चार गुना ज्यादा हो गई है।
सीओपीडी को समझने के लिए फेफड़ों का कार्य समझना जरूरी है। व्यक्ति जब भी सांस लेता है, तब वायु विंडपाइप से ब्रॉन्काइल ट्यूब में प्रवेश करती है। ये नलिकाएं छोटी नलिकाओं (ब्रांकियोल्स) में विभाजित होती है। इन छोटी नलिकाओं के अंत में वायुकोष (एल्वियोली) होते हैं, ये छोटे गुब्बारों की तरह होते हैं। सांस लेने पर ये हवा से भरकर फैल जाते हैं व सांस छोड़ते ही सिकुड़ जाते हैं।
सीओपीडी से पीड़ित -
जब कोई व्यक्ति सीओपीडी से पीड़ित होता है तो उसके फेफड़ों और वायुमार्गों में अनेक बदलाव होते हैं। फेफड़े के रोगों को बढ़ने से रोकने के लिए चिकित्सकों ने इलाज का नया तरीका नॉन-इंवेसिव वेंटिलेशन थैरेपी उपयोगी पाई। एक शोध के अनुसार एनआईवी थैरेपी क्रॉनिक सीओपीडी के मरीजों में मृत्युदर को 76% तक कम कर देती है। सकारात्मक परिणामों के बाद एनआईवी (नॉन इंवेसिव वेंटीलेशन) अब पूरी दुनिया में एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर गाइडलाइन्स का हिस्सा है।
मास्क में पोर्टेबल मशीन-
एनआईवी को चेहरे पर पहने जाने वाले मास्क में छोटी पोर्टेबल मशीन के रूप में फिक्स करते हैं जो सांस लेने में मदद करती है। यह रोगी की सांस से जुड़ी जरूरत को बिना इनट्यूबेश (एक प्रकार की लचीली प्लास्टिक नली जो विंडपाइप को खोलकर दवा को सीधे वायुकोषों में पहुंचाती है) की आवश्यकता के सपोर्ट करती है। एनआईवी, सीओपीडी के सभी रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं। केवल 10% मरीजों को इसे लगाने के लिए देते हैं।
Published on:
03 Jun 2019 08:08 am
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