वैज्ञानिकों ने पाया कि यह घातक कवक उच्च तापमान में भी विकसित हो सकता है। भारत, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमरीका में इसके संक्रमित ज्यादा हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि एंटी फंगल दवाओं का अधिक उपयेाग और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल इसके लिए जिम्मेदार हैं। 12 जुलाई तक इसके 716 मामले सामने आ चुके हैं। वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग को भी इस कवक के लिए उत्तरदायी मान रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया कि यह घातक कवक अब उच्च तापमान वाले वातावरण में भी विकसित हो सकता था। वैज्ञानिक इस बात से भी हैरान हैं कि यह कवक तीन अलग-अलग महाद्वीपों में अलग-अलग स्वरूपों में पहचाना गया। ऐसा शायद इसलिए संभव हो सका कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के इतर दुनिया भर के देशों में तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में तो तामान और भी ज्यादा असर दिखा रहा है। कैसेडवॉल का मानना है कि यह शोध आगे के अनुसंधान के लिए एक नई दिशा प्रदान करेगा।