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बच्चों को इस खतरनाक बीमारी से बचाता है डीपीटी का टीका

locationजयपुरPublished: Mar 15, 2020 08:13:30 pm

Vaccination Benefits: शिशुओं को सभी घातक बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर व्यापक रूप से चलाए जाते रहें हैं। जिसकी बजह से आज हम कई गंभीर रोगों से मुक्त भी होते जा रहे हैं, लेकिन कुछ सालों से जिस तरह से …

DPT vaccinations Protect your Child from Diphtheria

बच्चों को इस खतरनाक बीमारी से बचाता है डीपीटी का टीका

Vaccination Benefits: शिशुओं को सभी घातक बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर व्यापक रूप से चलाए जाते रहें हैं। जिसकी बजह से आज हम कई गंभीर रोगों से मुक्त भी होते जा रहे हैं, लेकिन कुछ सालों से जिस तरह से डिफ्थीरिया के रोगी सामने आ रहे हैं इससे हम सभी के सचेत होकर जागरूक होने की जरूरत है।
क्या है डिफ्थीरिया
डिफ्थीरिया जिसे आम भाषा में गलघोटू भी कहा जाता है। प्राणघातक रोगों की श्रेणी में आता है। यह एक संक्रामक रोग है जो कि ज्यादातर तीन से दस साल के बच्चों को अपना शिकार बनाता है। यह रोग ‘कोरनीबैक्टीरियम डिफ्थेरी नामक जीवाणु के कारण होता है।
प्रारंभिक लक्षण
डिफ्थीरिया से पीडि़त होने पर बच्चे के गले में दर्द, बुखार, खाना खाने में तकलीफ या गर्दन में सूजन आ जाती है और गर्दन का आकार बहुत बढ़ जाता है, जिसे ‘बुलनेकÓ कहा जाता है। इसके अलावा बच्चे को थकावट व बेचैनी होने लगती है, सांस लेने में तकलीफ होती है। गले के दोनों तरफ टॉन्सिल व इसके आस-पास गंदे भूरे रंग की परत जमा हो जाती है जिसे छेड़ने पर खून आने लगता है। कई बार नाक से गंदा पानी आने लगता है और नाक में पपड़ी जमने से नाक बंद रहने लगती है।
दुष्प्रभाव
– डिफ्थीरिया रोग मुख्यत: शरीर के तीन भागों गले, नाक व स्वर यंत्र (सांस नली का ऊपरी भाग) में होता है लेकिन शरीर के अन्य भाग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। आमतौर पर हृदय व हमारे तंत्रिका तंत्र पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
– डिफ्थीरिया का जीवाणु बच्चे के शरीर में पहुंचकर एक्सोटॉक्सिन बनाता है। ये एक्सोटॉक्सिन जब उसके हृदय पर हमला करते हैं तो बच्चे को मायोकार्डाइटिस हो जाता है, जिससे कई बार बच्चे की मौत भी हो जाती है।
– डिफ्थीरिया से पीडि़त कुछ बच्चों में कोमल तालू का पेरालाइसिस हो जाता है। इस स्थिति में कई बार ऐसा लगता है कि बच्चा नाक से बोल रहा है और कई बार स्थिति यह होती है कि रोगी जो कुछ तरल पदार्थ पीता है वह नाक से बाहर आ जाता है।
इनकाे ज्यादा खतरा
जिन बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, भीड़भाड़ या गंदगी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के बच्चों को इस बीमारी की आशंका रहती है।

इलाज
इस बीमारी का पता चलने पर बाकी बच्चों से पीड़ित बच्चे को दूर रखना चाहिए। इलाज के लिए बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है जहां उसे आइसोलेशन वॉर्ड में रखा जाता है। इलाज के दौरान उसे पेनसिलिन दी जाती है। इसके अलावा ‘एंटी डिफ्थेरिक सिरम’ दी जाती है जो कि इस बीमारी के लिए कारगर दवा है।
शुरुआती 24 घंटे
इस बीमारी के पता चलने पर शुरुआती 24 से 48 घंटे काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान
यदि बच्चे को सही इलाज मिल जाता है तो बच्चे की जान बचाई जा सकती है क्योंकि डिफ्थीरिया शरीर में एक प्रकार का जहर बनाता है जो कि बच्चे के ब्लड के साथ मिलकर और अंगों को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।
बचाव
जन्म के बाद जिन बच्चों को डीपीटी (डिफ्थीरिया-परटूसिस- टिटनस) के टीके नहीं लगाए जाते हैं, उन्हें ये रोग होता है। ये टीके डेढ, ढाई और साढ़े तीन महीने पर लगाए जाते हैं। फिर बुस्टर डोज डेढ और पांच साल में लगाई जाती है। डिफ्थीरिया का रोग अक्टूबर से फरवरी में तेजी से फैलता है क्योंकि सर्दी का यह मौसम इसके जीवाणु के लिए अनुकूल होता है।
ध्यान रखें
डिफ्थीरिया से बचाव के लिए अपने बच्चे को डेढ, ढाई और साढ़े तीन माह में डीपीटी के टीके जरूर लगवाएं।

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