ये सिर्फ दीपिका ही नहीं डिप्रेशन के अधिकतर मरीजों के साथ होता है। उनके चेहरे से यकायक पता नहीं चलता कि उनके भीतर कितना कुछ टूट रहा है। जानते हैं कि दीपिका किस तरह इन सबसे लड़ीं और उबरीं ताकि तनाव झेल रहे दूसरे मरीजों को भी प्रेरणा और नई ऊर्जा मिल सके।
दीपिका की बीमारी
बात पिछले साल 15 फरवरी की है। मैं सुबह उठी तो काफी कमजोर महसूस कर रही थी। साल 2013 की तरक्की, अवॉर्ड और सभी लोगों का प्यार सबकुछ बेकार लग रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, कहां जाऊं। मैं बस रोना चाहती थी। इस दौरान मेरे माता-पिता मुझसे मिलने आए हुए थे और दो दिन बाद उन्हें वापस बंैगलुरू जाना था। मुझे रोता हुआ देख मां को लगा कि शायद में उनके जाने से दुखी हूं। लेकिन ऐसा नहीं था।
मां के सामने रोईं
मैं, मां के सामने कई बार रोई और मेरी हालत देखकर मां को लग गया कि कुछ गड़बड़ है। वे मेरे पास ही रुक गईं और पापा को वापस जाने के लिए कहा। लेकिन जब मेरी परेशानी के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ तो मां ने अपनी एक काउंसलर (एना चांडी) दोस्त से मेरे लिए बात की।
हाल किया बयां
एना आंटी ने फोन पर मुझसे बात की तो उन्हें कुछ गड़बड़ लगा। अगले ही दिन वे मुझसे मिलने के लिए मुंबई आ गईं। पूरे दिनभर बातचीत के बाद उन्हें लग गया कि ये दुख नहीं डिप्रेशन था जिसकी एक वजह कुछ समय पहले हुई मेरी एक दोस्त की मौत भी थी। उन्होंने मां से कहा कि मुझे एक डॉक्टर की जरूरत है। मां के काफी समझाने के बाद मैं मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए तैयार हो गई।
खुद को सबके सामने लाना
मैं लोगों को बताना चाहती थी कि डिप्रेशन एक ऐसी स्थिति है जब आप दूसरों की नहीं बल्कि अपनी सोच से बीमार होते हैं और बार-बार शरीर से संकेत मिलने के बाद भी ये मानने को तैयार नहीं होते कि डिप्रेस्ड हैं। देश में तनाव से गुजर रहे 36 से 40 फीसदी लोग डिप्रेशन को कलंक मानकर खुद हीनभाव से ग्रसित न हों इसलिए मैंने अपने तनाव और उससे निकलने के दौर को सबके सामने लाने का फैसला किया।
डॉक्टरी राय
जयपुर स्थित ईएसआईसी अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अखिलेश जैन के अनुसार डिप्रेशन या तनाव किसी भी उम्र के व्यक्ति हो सकता है। फैमिली हिस्ट्री, इच्छाओं का पूरा न होना, दिल टूटना, काम का प्रेशर, दिमागी संरचना में रासायनिक बदलाव और अकेलापन तनाव के कारण हो सकते हैं। आमतौर पर व्यक्ति को यह पता चल जाता है कि वह तनाव में है इसलिए यह स्थिति सिजोफ्रनिया से अलग है। इस दौरान व्यक्तिउदास रहने लगता है, नकारात्मक सोच, भविष्य की चिंता, भूख ज्यादा या कम लगना, नींद कम या ज्यादा आना, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आना, घरेलू या सामाजिक समारोह में जाने से कतराना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।
लाइलाज नहीं है तनाव
डिप्रेशन के इलाज के लिए विशेषज्ञ दवाओं और काउंसलिंग की मदद लेते हैं। शुरुआत में जो दवा दी जाती है आमतौर पर उसका असर तीन से चार हफ्ते में ही पता चल पाता है। यदि मेडिसिन का प्रभाव नहीं हो रहा होता है तो विशेषज्ञ अन्य एंटी डिप्रेसेंट दवाओं का प्रयोग करते हैं और कई बार स्थिति के अनुसार दो दवाओं का कॉम्बिनेशन भी दिया जाता है।
खानपान का भी रखें खयाल
संतुलित आहार और नियमित व्यायाम जैसे योगा, ध्यान डिप्रेशन से लडऩे में मददगार होते हैं। इस समस्या का पूरी तरह से इलाज कराना भी जरूरी होता है। साथ ही धूम्रपान व शराब से तौबा करनी चाहिए।
दवाओं का दुष्प्रभाव नहीं
लोगों में भ्रम है कि एंटी डिप्रेसेंट दवाओं के दुष्प्रभाव ज्यादा होते हैं जैसे नींद प्रभावित होना, मोटापा आदि। फिलहाल ऐसी दवाइयां भी मार्केट में उपलब्ध हैं जिनसे किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।
ध्यान रखें ये बातें
अक्सर लोग स्थिति में सुधार होने पर दवाएं लेना छोड़ देते हैं लेकिन ऐसा करना गलत है। डिप्रेशन का इलाज 8-9 माह (डॉक्टर के बताए अनुसार) तक चलता है जिसे पूरा करना जरूरी होता है वर्ना तनाव दोबारा होने की आशंका रहती है।
परिवार दे प्यार
डिप्रेशन होने पर व्यक्ति को पूरी तरह से सपोर्ट दें।
उसे मरीज न समझें।
ऐसी बातें न दोहराएं जिनसे उसे तकलीफ होती हो।
व्यक्ति को अकेला न रहने दें।
तनावग्रस्त व्यक्तिको उसकी क्षमताओं या उपलब्धियों का अहसास कराएं।