मलेरिया –
इस रोग में प्लाज्मोडियम परजीवी के संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से रोगाणु व्यक्ति के खून में फैलते हैं। लक्षण मच्छर काटने के 10वें दिन शुरू होकर 4सप्ताह तक रहते हैं।
लक्षण: बुखार आना मुख्य लक्षण है। पेटदर्द, कंपकंपी, खांसी-जुकाम, उल्टी, हाइपोथर्मिया और तेज सांस चलना।
चिकनगुनिया –
चिकनगुनिया का अर्थ है ‘हड्डी टूटने जैसा दर्द। यह वायरल बुखार एडीज मच्छर के काटने से होता है। इस रोग में मरीज के जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। संक्रमित होने के एक हफ्ते में कमजोरी आने लगती है।
लक्षण: चिकनगुनिया व डेंगू के लक्षण समान होते हैं। जोड़दर्द, सूजन व विकृति, बुखार, सिरदर्द, हड्डियों में दर्द, भूख न लगना, त्वचा का खुश्क होना लक्षण हैं।
डेंगू –
मानसून में होने वाले रोगों में डेंगू सामान्य बीमारी है। संक्रमित मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के दिन में काटने से होता है।
लक्षण: तेज बुखार के साथ मांसपेशियों व जोड़ों में अधिक दर्द, सिरदर्द, उल्टी व दस्त, त्वचा पर लाल रंग के दाने हो सकते हैं। गंभीर स्थिति में प्लेटलेट्स की संख्या तेजी से गिरने पर नाक, कान, मुंह से खून आता है। बीपी भी कम होने लगता है।
यलो फीवर –
यलोफीवर को पित्तज्वर भी कहते हैं। यह डेंगू व मलेरिया की तरह वायरल संक्रमण है जो स्टैगोमिया नामक मच्छर के काटने से फैलता है। यह मच्छर दिन के समय काटता है। आमतौर पर इसके लक्षण पीलिया जैसे होते हैं। इसमें त्वचा व आंखों में पीलापन दिखता है। लक्षण दिखते ही डॉक्टरी सलाह लें। थोड़ी सी भी लापरवाही घातक हो सकती है।
लक्षण: बुखार, सिरदर्द, सर्दी लगना, पीठदर्द, उल्टी आना, भूख न लगना जैसी समस्या होती है। संक्रमण आमतौर पर 3-4 दिन तक रहता है।
आयुर्वेदिक उपाय-
विषैले तत्त्वों को बाहर निकालने,वात-पित्त को संतुलित करने व बुखार को कम करने के लिए दवाएं देते हैं। गुडुचि, धनवयास, मुस्ता, परपटक, खस, संदल (चंदन) व ग्वारपाठा जैसी जड़ी-बूटियां सभी लक्षणों में बहुत लाभकारी हैं। पित्त को संतुलित करने व रक्त बहने को रोकने के लिए ठंडक देने वाली दवाएं देते हैं। जैसे खस, कामादुधा रस, चन्द्रकला रस बेहद लाभकारी हैं। रोगी को पीने के लिए गुनगुना पानी दें। नहलाने के बजाय गीले कपड़े से शरीर पोछें।