आयुर्वेद –
हाइपो के मुकाबले हाइपरथर्मिया के मामले ज्यादा दिखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार महिलाओं के शरीर की प्रकृति गर्म मानी गई है। ऐसा खट्टी, तलीभुनी व मसालेदार चीजें अधिक खाने के अलावा अनियमित माहवारी होना है। जन्म के बाद बच्चा जब नए वातावरण में आता है तो उसके शरीर का तापमान बाहरी टेम्प्रेचर को सहन नहीं कर पाता जिससे उसका तापमान बढ़ जाता है।
इलाज- महिलाओं को शतावरी लेने के लिए कहते हैं ताकि इम्यूनिटी बढऩे के साथ कमजोर हड्डियों को ताकत मिले और माहवारी सामान्य हो। इसके अलावा तापमान बढ़ने पर उषीरासव, धतररिष्ठ, आंवले का पाउडर, मुलैठी चूर्ण, खश, पित्तपापड़ा व नागर जैसी औषधियां प्रयोग में लेने की सलाह देते हैं। तापमान घटने पर प्रध्वाचिंतामणि, केसर, कस्तूरी याकुतिरस व वातव्याधिरस आदि देते हैं।
ध्यान रखें –
पीरियड्स यदि सामान्य न हो तो डॉक्टरी सलाह लें। आयुर्वेद में बुखार को अच्छा माना जाता है। जिसके 2-3 दिन तक बने रहने से विषैले तत्त्व त्वचा के जरिए पसीने के रूप में बाहर निकलते हैं। ऐसे में यदि बार-बार बुखार आए तो तुरंत इलाज लें। ज्यादा मसालेदार व तलाभुना भोजन न लें।
होम्योपैथी –
हाइपो बच्चों और बुजुर्गों में ज्यादा होता है। जिसका कारण कमजोर प्रतिरोधी तंत्र है। वहीं हाइपरथर्मिया, बुखार से अलग है जिसमें तापमान बढ़कर स्थिर हो जाता है। कंफ्यूजन, बोलने में दिक्कत, भूख न लगना, अनिद्रा प्रारंभिक लक्षण है। ऐसे में तुरंत उपचार लें। लो ब्लड प्रेशर, थायरॉइड के रोगी, ठंड लगना या शरीर में पर्याप्त प्रोटीन की मात्रा न हो तो यह इसकी आशंका अधिक रहती है।
इलाज-
इस पद्धति में हाइपो व हाइपर दोनों का इलाज शुरुआती अवस्था में अलग-अलग दवाओं से होता है। रोगी की स्थिति, लक्षण और गंभीरता के आधार पर उचित दवा का चयन करते हैं। आमतौर पर तापमान नियंत्रित करने के लिए बेलेडोना और ट्यूक्लीनिंग दवा देते हैं। ज्यादातर मामले इमरजेंसी के आते हैं जिसके लिए फिजिशियन के पास रेफर कर देते हैं।
ध्यान रखें-
जो लोग शराब पीने के आदी हैं उनमें हाइपरथर्मिया घातक हो सकता है। इसका कारण उनके शरीर की गर्मी का त्वचा के जरिए पसीने के रूप में न निकलना है। हीट स्ट्रोक की स्थिति बने तो तुरंत डॉक्टरी सलाह जरूर लें। अचानक ठंडे से गर्म या गर्म से ठंडे वातावरण में न जाएं।
ये बातें रखें ध्यान –
सूरज की तेज किरणें और इससे होने वाले पानी की कमी से शरीर का तापमान बिगड़ जाता है। यह अवस्था बुखार से अलग होती है क्योंकि इसमें तापमान बढ़कर या घटकर स्थिर हो जाता है। वहीं बुखार होने पर शरीर का तापमान घटता और बढ़ता रहता है। ऐसे में जरूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए। जैसे इस मौसम में डाइट में कुछ बदलाव जरूरी हैं ताकि शरीर को पर्याप्त नमी मिले और तापमान नियंत्रित रहे।
बुखार तेज होने पर रोगी को ठंडी हवा में आराम कराएं।
यदि रोगी के शरीर का तापमान 103डिग्री फेरनहाइट हो जाए तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी बार-बार रखें।
मरीज के शरीर को दिन में 3-4 बार गीले तौलिए से पौछें।
चाय या कॉफी आदि पीने को न दें।
लंबे समय तक एसी या कूलर में बैठने के बाद अचानक तेज सूरज की किरणों के संपर्क में न आएं।
ऐसे नवजात जो जन्म के समय कमजोर और कम वजन के साथ पैदा होते हैं उन्हें तुरंत स्पेशल केयर यूनिट में रखा जाना चाहिए।
लिक्विड डाइट जैसे दही, मट्ठा, जीरा वाली छाछ, जलजीरा, लस्सी, आमपना आदि पीते रहें।
भोजन में ठंडी तासीर वाली चीजें खाएं।
रोजाना एक मौसमी फल कच्चा खाएं या फिर इनका जूस भी पी सकते हैं।
शराब और धूम्रपान से तौबा करें।
बिना डॉक्टरी सलाह के किसी भी तरह की दवाएं न लें। ये शरीर में गर्मी बढ़ाती हैं।
घर से बाहर निकलते समय स्कार्फ से चेहरा ढकें और आंखों को सूरज की तेज किरणों से बचाने के लिए सनग्लास पहनें।
किसी भी लक्षण को लंबे समय तक नजरअंदाज न करें।