कोलेस्ट्रॉल मोम जैसा पदार्थ होता है जिसका निर्माण हमारे शरीर में लिवर करता है। यह शारीरिक गतिविधियों में मदद करता है। लेकिन कई बार खराब खानपान या कुछ अन्य वजहों से शरीर में इसकी मात्रा बढ़ जाती है। शारीरिक गतिविधियों के अभाव में शरीर इसे पचा नहीं पाता और यह वसा के रूप में शरीर में जमने लगता है। इससे रक्तसंचार प्रभावित होने लगता है व गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
इसके कोई लक्षण नहीं होने से यह परेशानी खुलकर सामने नहीं आ पाती है। इसलिए फैमिली हिस्ट्री व मोटापे की समस्या होने पर शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह से बच्चों की पहली जांच 2 वर्ष में, दूसरी 10-11 की उम्र में व तीसरी 17-18 वर्ष की आयु में करा लेनी चाहिए। भविष्य में किसी प्रकार के रोग की आशंका न हो, इसके लिए डॉक्टरी सलाह से 17-18 साल के बीच बच्चों की एक बार जांच करा लेना ठीक माना जाता है।
शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर ‘लिपिड प्रोफाइल’ जांच से देखा जाता है। इसमें खासतौर पर एलडीएल (लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) व एचडीएल (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन) का स्तर देखते हैं। सामान्य रूप से शरीर में एलडीएल की अधिक मात्रा व्यक्ति में बीमारियों का कारण बनती है। इसलिए इसे बुरा कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है। एलडीएल शरीर में 70 मिलिग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। वहीं एचडीएल नाड़ियाें के अंदर से गंदगी को बाहर निकालने का काम करता है, इसलिए इसे अच्छा कोलेस्ट्रॉल माना जाता है। इसकी अधिकता स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है। यह 40 मिलिग्राम प्रति डेसीलीटर से कम नहीं होना चाहिए।
अपने शरीर में कोलेस्ट्रॉल को आप संतृप्त वसा में कमी, नियमित व्यायाम, धूम्रपान छोड़कर और एल्कोहल का सेवन कम करके आप कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं।