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हर्निया ऑपरेशन के बाद रखें ये सावधानी, दोबारा नहीं होगी परेशानी

locationजयपुरPublished: Nov 01, 2019 05:35:57 pm

Hernia Treatment: हार्निया की बीमारी मांसपेशी की झिल्ली कमजोर होने से होती है, जबकि बच्चों में यह बीमारी जन्मजात होती है। एक साल तक के बच्चे में हर्निया होता है तो यह अपने आप ठीक हो सकता है…

Keep This Caution After Hernia Operation To Avoid Problems

हर्निया ऑपरेशन के बाद रखें ये सावधानी, दोबारा नहीं होगी परेशानी

Hernia Treatment: हार्निया की बीमारी मांसपेशी की झिल्ली कमजोर होने से होती है, जबकि बच्चों में यह बीमारी जन्मजात होती है। एक साल तक के बच्चे में हर्निया होता है तो यह अपने आप ठीक हो सकता है। इसके लिए चिकित्सक से परामर्श ली जा सकती है, जबकि बड़ों में ऑपरेशन ही इसका इलाज है। समय रहते इसका इलाज शुरू कराना जरूरी है। यदि इलाज में देरी करते हैं तो इससे शरीर के भीतरी अंगों और रक्त वाहिकाओं को नुकसान हो सकता है। ऑपरेशन के बाद भारी वजन उठाने से बचना चाहिए, नहीं तो ये तकलीफ दोबारा हो सकती है।
कैविटी की तरह पेट करता है काम
हर्निया में शरीर का भीतरी अंग बाहर की ओर आ जाता है, जिससे शरीर में एक अलग उभार दिखाई देने लगता है। पेट कैविटी की तरह काम करता है। इसके आसपास लिवर, पैंक्रियाज, किडनी, गॉल ब्लैडर और आंतें होती हैं, जिनको झिल्ली कवर करती है। जब यह झिल्ली कमजोर हो जाती है, फट जाती है या छेद हो जाता है तब इसके आसपास के अंग जगह छोड़ देते हैं। इससे शरीर के उस हिस्से में उभार दिखाई देने लगता है, जिसे हर्निया कहते हैं। हर्निया किसी भी ऑपरेशन के बाद हो सकता है। कमजोरी की शिकायत होने पर भी यह बीमारी हो सकती है।
तीन तरह का होता हर्निया
हर्निया तीन तरह का होता है। पेट और जांघ के बीच के हिस्से में जो हर्निया होता है उसे ग्रोइंग हर्निया और जांघों के हर्निया को फिमोरल हर्निया कहते हैं। यह महिलाओं में अधिक होता है। नाभि के आसपास अमाइकल या पैरा अमाइकल हर्निया होता है।
आंतों में हुआ तो खतरनाक
आंतों का हर्निया ज्यादा खतरनाक है। यदि आंत बाहर आ गई है तो यह फंस सकती है। इनके फंसने या उलझने से तेज दर्द होता है। उल्टी होती है व खाना पचता नहीं है। इसे ऑब्सट्रक्टेड हर्निया कहते हैं। समय रहते इलाज नहीं कराने पर आंतों में रक्तसंचार बाधित हो जाता है। इससे आंतों में गैंगरीन का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में मरीज की जान भी जा सकती है। समय रहते इसका ऑपरेशन करवाने से बड़ी परेशानी से बचा जा सकता है।
लक्षण पहचानें
खांसने, छींकने या भारी वजन उठाने, लंबे समय तक दौड़ने से गोलनुमा आकृति शरीर में उभरकर सामने आती है। इसमें हल्का दर्द भी हो सकता है। आराम करने पर दर्द गायब कम हो जाता है। इससे रोगी को महसूस होता है कि शरीर के उस हिस्से में हवा भर गई है। यह हर्निया का शुरुआती लक्षण है। एडवांस स्टेज में इसका आकार बड़ा हो जाता है और लेटने या दबाने से भी दर्द कम नहीं होता है।
दो तरह से ऑपरेशन
हर्निया का ऑपरेशन दो तरह से होता है। ओपन सर्जरी में चार से छह इंच का चीरा लगाकर बाहर की तरफ निकले अंग को भीतर कर जाली लगाते हैं। इसमें परेशानी अधिक होती है और लंबा आराम करना पड़ता है। लेप्रोस्कोपी में एक छेद एक सेमी और दो छेद आधे-आधे सेमी का करते हैं। बाहर निकले अंग को भीतर कर जाली लगाते हैं। टाइटेनियम से बनी फिक्सेशन डिवाइस होती है जिसकी मदद से उसे फिक्स करते हैं। डबल लेयर की यह जाली प्रोलीन नामक तत्त्व से बनती है।
सावधानी बरतें
बढ़ती उम्र के साथ मांसपेशियों का कमजोर होना और वजन को नियंत्रित रखना बड़ी चुनौती है। इसके लिए दैनिक जीवन में कुछ सावधानियां बरत कर हम बच सकते हैं-
– तीन-चार दिन से ज्यादा खांसी से आए तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
– वजन उठाते समय सावधानी बरतें। बहुत भारी वजन नहीं उठाएं।
– अपना वजन नियंत्रित रखें। वजन बढ़ने से पेट पर दबाव बढ़ता है।
ध्यान दें
ऑपरेशन के बाद तीन माह तक दो-तीन किलो से अधिक वजन न उठाएं। ऐसा कोई काम न करें जिससे पेट पर दबाव बने। ऑपरेशन बाद 6-7 दिन तक हल्का खाना खाएं। सात दिन बाद चार पहिया और 15 दिन बाद दोपहिया वाहन चला सकते हैं।
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