सच: दोनों किडनियां खराब हो सकती हैं। एक किडनी बिल्कुल खराब होने पर इसका काम दूसरी किडनी करती है। ऐसे में रोगी को कोई तकलीफ नहीं होती व खून में क्रिएटिनिन व यूरिया की मात्रा सामान्य रहती है। लेकिन दूसरी किडनी का कार्य बढ़ने से यह भी खराब हो जाए तो शरीर से विषैले तत्त्व बाहर नहीं निकल पाते व खून में क्रिएटिनिन व यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। ब्लड टैस्ट कराएं।
सच: कई रोगों में किडनी की कार्यप्रणाली पूरी तरह से सामान्य होने के बावजूद सूजन आती है, जैसे नेफ्रॉटिक सिंड्रोम (जरूरत से ज्यादा प्रोटीन यूरिन के जरिए बाहर निकालता है) में ऐसा होता है। सूजन किडनी संबंधी सभी मरीजों में दिखे, जरूरी नहीं। कई बार किडनी फेल्योर की आखिरी स्टेज में भी सूजन नहीं दिखती।
सच: किडनी के सभी रोग गंभीर नहीं होते। ज्यादातर मामलों में रोग की शुरुआती स्तर पर यदि पहचान हो जाए व इलाज लें तो रोग को गंभीर होने से रोक सकते हैं।
सच: क्रॉनिक किडनी फेल्योर के कई मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांट कर इलाज करते हैं जिसके बाद दवाएं नियमित चलती हैं ताकि शरीर नई किडनी को अपनाए रखे। दवाओं को बीच में बंद करने से स्थिति बिगड़ सकती है।
सच: एक्यूट किडनी फेल्योर में कुछ डायलिसिस कराने के बाद किडनी अपना काम सुचारू तरीके से करने लगती है। संक्षिप्त में कहें तो डायलिसिस की जरूरत कितनी बार होगी, यह किडनी फेल्योर के प्रकार पर निर्भर करता है।
सच: कम यूरिन, किडनी संबंधी कई रोगों में पाया जाने वाला मुख्य लक्षण है। ऐसे रोगियों को संतुलित मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जाती है। हालांकि किडनी में पथरी, सामान्य काम करने वाली किडनी के साथ यूरिन संक्रमण हो तो ज्यादा पानी पीने की सलाह देते हैं।
सच: नहीं, केवल डायलिसिस किडनी फेल्योर का इलाज नहीं है बल्कि यह एक सपोर्टिव ट्रीटमेंट है। जो काम किडनी नहीं कर पाती वह डायलिसिस द्वारा किया जाता है।