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सुबह जांचें कराने से मिलती है बीमारी की सटीक जानकारी

locationजयपुरPublished: Oct 08, 2019 06:43:42 pm

सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है।

सुबह जांचें कराने से मिलती है बीमारी की सटीक जानकारी

सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है।,सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है।,सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है।

सैम्पल की जांच माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी व बायोकैमिस्ट्री लैब में होती। 01 बार लिए गए सैंपल से कई तरह कई तरह की जांचें हो सकती हैं। रोगी को बार-बार इंजेक्शन से चुभन नहीं होती। 8-9 बजे के बीच या इससे पहले यानी सुबह के समय की गई जांचों से रोग की पुष्टि ज्यादा अच्छे से होती है।

रोगों की जांच के लिए चिकित्सा जगत में खासतौर पर तीन तरह की लैब का प्रयोग होता है। संक्रामक रोगों की जांच के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सैंपल की जांच होती है। वहीं पैथोलॉजी में खून संबंधी और कोशिका (टिशु) से जुड़ी जांचें जबकि बायोकेमेस्ट्री में ब्लड में कोलेस्ट्रॉल, शुगर, क्रिएटिनिन और लिपिड प्रोफाइल लेवल की जांच कर रिपोर्ट तैयार की जाती है।

बीमारी को जानने के लिए जब सैंपल विभिन्न विभागों की मशीनों में लगाते हैं तो संबंधित विभाग के चिकित्सक क्वालिटी कंट्रोल पर नजर रखते हैं जिसके बाद मशीन डाटा देती है। एक्सपर्ट चिकित्सकों की टीम डाटा की स्टडी व एनालिसिस करने के बाद रिपोर्ट तैयार करती है जिसके बाद व्यक्ति में रोग की पुष्टि होती है। इसी रिपोर्ट के आधार पर विशेषज्ञ दवा, डोज व इलाज का तरीका तय करते हैं।

एक सैंपल से कई जांचें –
सेंट्रलाइज सैंपल कलेक्शन के तहत कोई व्यक्ति किसी समस्या को लेकर अस्पताल पहुंचता है तो उसे एक बार सैंपल देना होता है। इसी सैंपल को अलग-अलग टैस्ट ट्यूब में डालकर विभागों में भेजते हैं। इस सुविधा से रोगी को बार-बार सुई की चुभन से परेशान और सैंपल देने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है।

स्टे्रन बदलने से फैलती बीमारी –
मिशिगन स्टे्रन वायरस की प्रकृति में बदलाव से रोग तेजी से फैलते हैं क्योंकि उस वक्त उसकी रोकथाम व इलाज के लिए कोई उचित व्यवस्था व दवा नहीं होती। इंफ्लूएंजा वायरस में जेनेटिक बदलाव को एंटीजेनिक ड्रिफ्ट व दो अलग स्ट्रेन के मिलने से बने नए वायरस की प्रक्रिया को एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। मौसमी बदलाव से लोगों की इम्युनिटी घटती है जिसके लिए वैक्सीन लगवाते हैं। यह स्ट्रेन संबंधी दिक्कतों की आशंका घटाती है।

भोजन के बाद टैस्ट –
भूखे पेट और कुछ खाने के बाद मुख्य रूप से ईएसआर, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल की जांच होती है। इससे शरीर में कुछ भी खाद्य पदार्थ न होने या इनकी उपस्थिति में शरीर में क्या बदलाव हैं, जानकारी मिलती है। इनके आधार पर एक्सपर्ट रोग की पॉजिटिव व नेगेटिव रिपोर्ट तैयार करते हैं।

गड़बड़ी न हो – कई बार देखा जाता है कि एक ही दिन में रोगी एक तरह की जांच अलग-अलग लैब से करवाता है जिसकी जांच रिपोर्ट एक दूसरे से भिन्न होती है। इसका प्रमुख कारण कई बार सैंपल कलेक्शन में बरती गई लापरवाही, जांच के लिए प्रयोग हुए सॉल्युशन या इंजेक्शन में किसी तरह की खराबी मुख्य वजह है। मशीन में किसी तरह की तकनीकी खराबी से भी गलत रिपोर्ट बनने के मामले सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में एक बार डॉक्टर से मिलने के बाद अच्छी लैब से क्रॉस चेक जरूर करवाना चाहिए।

इसलिए सुबह जांच – यूरिन जांच सुबह इसलिए कराते हैं क्योंकि रातभर यूरिन ब्लैडर में भरा रहता है। उसकी जांच होने पर बैक्टीरिया का पता आसानी से चल जाता है। इसी तरह टीबी की जांच के लिए बलगम का सैंपल सुबह उठते ही निकालकर जमा किया जाता है। इसका कारण उस सैंपल में किटाणु पर्याप्त मात्रा में आ जाते हैं जिनकी पहचान जांच के बाद आसानी से हो जाती है।

स्टे्रन बदलने से फैलती बीमारी –
मिशिगन स्टे्रन वायरस की प्रकृति में बदलाव से रोग तेजी से फैलते हैं क्योंकि उस वक्त उसकी रोकथाम व इलाज के लिए कोई उचित व्यवस्था व दवा नहीं होती। इंफ्लूएंजा वायरस में जेनेटिक बदलाव को एंटीजेनिक ड्रिफ्ट व दो अलग स्ट्रेन के मिलने से बने नए वायरस की प्रक्रिया को एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। मौसमी बदलाव से लोगों की इम्युनिटी घटती है जिसके लिए वैक्सीन लगवाते हैं। यह स्ट्रेन संबंधी दिक्कतों की आशंका घटाती है।

लैब टैस्ट –

वायरस लैब : इसमें वायरस के म्यूटेशन व एंटीजेनिक बदलाव (प्रकृति) को परखा जाता है। इसके लिए लैब में इन वायरस की सिक्वेंसिंग कर इनके दुष्प्रभावों के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।
ड्रग रेसिस्टेंस सर्विलांस : इससे रोगी में दवा के असर व दवा की डोज का पैमाना तय होता है। इससे दवा के असर के अलावा रोगी की इम्युनिटी के हिसाब से दवा का क्या स्तर होगा, का पता लगाते हैं।

मल्टीप्लेक्स पीसीआर : इससे एक बार में एक सैंपल से कई वायरस को एकसाथ देख सकते हैं। दिमागी बुखार, जेई व स्वाइन फ्लू वायरस की जांच में सहायक।
बायो फायर : इससे एक घंटे में 12-20 प्रकार के बैक्टीरिया की पहचान करते हैं। यह जांच थोड़ी महंगी है व रोगी को इसके लिए 12 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
ऑटोमेटेड सिस्टम : करीब 600 रु. के खर्च के बाद जांच रिपोर्ट तुरंत मिलती है। ये वेंटिलेटर, आईसीयू या गंभीर रोगियों के इलाज के दौरान उपयोगी है। मैनुअल जांच के लिए रोगी को 75 रु.खर्च करने होते हैं लेकिन रिपोर्ट 24 से 30 घंटे में मिलती है।

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