कारण –
गर्भाशय के आकार में बदलाव यानी आमतौर पर त्रिकोणाकार के बजाय अन्य आकार, इसमें कोई गांठ का होना, बच्चेदानी का मुंह खुला रहना, बच्चेदानी की टीबी, अंडाशय का अलग-अलग विकसित होना आदि प्रमुख वजह हैं। कभी कभार गर्भ के बढऩे के दौरान भी गर्भाशय से जुड़ी समस्याएं सामने आती हैं। कुछ परिस्थितियों में मुलरियन एनोमलीज की स्थिति गर्भाशय के एक के बजाय दो होने पर भी दिखती है।
लक्षण-
जन्मजात गर्भाशय की विकृति हो तो बिना गर्भधारण के भी पेटदर्द, यूरिन करते समय तकलीफ, अत्यधिक माहवारी या असहनीय दर्द होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भपात, समय पूर्व प्रसव, गर्भस्थ शिशु की पोजीशन सही न होने, अंदरुनी गर्भाशय के विकास में रुकावट व इंफर्टिलिटी की आशंका होती है। वहीं जिनमें युवावस्था के दौरान विकृति होती है उनमें पीरियड्स के दौरान तेज दर्द व अधिक रक्तस्त्राव होता है।
जांचें –
गर्भाशय की स्थिति जानने के लिए सबसे पहले रोगी से उसकी हिस्ट्री पूछते हैं। एक्सरे और सोनोग्राफी कर गांठ का पता लगाते हैं। वहीं गर्भाशय के अंदर यदि कोई झिल्ली होती है तो हिस्टेरोस्कोपी करते हैं।
इलाज – गांठ या झिल्ली की स्थिति में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। बच्चेदानी का मुंह खुला होने की स्थिति में गर्भ ठहरने के 14 हफ्ते बाद मुंह को टांके लगाकर सील देते हैं। जिन्हें 9वें माह में खोल दिया जाता है।
यदि दो बच्चेदानी हो तो किसी एक में रुकावट होने पर माहवारी के दौरान ब्लड इकट्ठा होने से गांठ बन सकती है।