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प्रेसबायोपिया: जानिए उम्र बढ़ने के साथ क्यों कमजोर होने लगती है पास की नजर

locationजयपुरPublished: Jul 29, 2019 06:46:19 pm

यह बीमारी उम्र के साथ होने वाले सामान्य बदलाव के कारण होती है जोकि 40 की उम्र के बाद देखने को मिलती है।

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यह बीमारी उम्र के साथ होने वाले सामान्य बदलाव के कारण होती है जोकि 40 की उम्र के बाद देखने को मिलती है।

प्रेसबायोपिया यानी पास की नजर का कमजोर होना है। यह बीमारी उम्र के साथ होने वाले सामान्य बदलाव के कारण होती है जोकि 40 की उम्र के बाद देखने को मिलती है। हालांकि मोबाइल फोन और इसी तरह के अन्य गैजेट्स के इस्तेमाल करने से कई बार यह बीमारी उम्र से पहले ही नजर आने लगती है। इसमें नजर को पास में केंद्रित कर पाने में परेशानी होती है। खासकर छोटे अक्षरों और कम रोशनी में। शुरू में तो व्यक्ति मोबाइल या किताब को दूर कर पढ़ लेता है लेकिन बाद में दिखाई नहीं देता है।

कारण – इसका मुख्य कारण उम्र का अधिक होना है। यह बीमारी 40वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में आम है, लेकिन मोबाइल, कम्प्यूटर और टेबलेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल से लोगों को जल्द ही चश्मा लग जाता है। एस्टीमैटिज्म (दृष्टिवैषम्य), नियरसाइटेडनेस (निकटदृष्टि दोष) और फारसाइटेडनेस (दूरदृष्टि दोष) के रूप में प्रेसबायोपिया में अंतर पाया जा सकता है, जो कि आंखों की पुतलियों के आकार से संबंधित है और आनुवांशिक व पर्यावरणीय कारणों से होते हैं।

लक्षण-इलाज – प्रेसबायोपिया के मरीजों को नजदीक का काम करने जैसे कढ़ाई या हाथों से लिखने पर सिरदर्द, आंखों पर दबाव या थकान महसूस होने लगता है। अगर बीमारी की पहचान शुरुआती चरण में हो जाती है तो दिनचर्या में कुछ बदलाव कर इसको नियंत्रित किया जाता है, लेकिन बीमारी बढऩे पर सर्जरी की जाती है। इसके लिए कंडक्टिव कैरेटोप्लास्टी या कॉर्नियल इन-लेज आदि सर्जरी की जाती है। इसमें नई तकनीक इंट्राऑक्यूलर लैंस और रिफे्रक्टिव लैंस एक्सचेंज भी है।

चश्मा – बायफोकल या प्रोग्रेसिव लैंस लगे चश्मे प्रेसबायोपिया में सुधार के लिए सबसे अच्छे होते हैं। बायफोकल का मतलब है, जिसमें दो फोकस होते हैं। चश्मे के लैंस का प्रमुख भाग दूरदृष्टि दोष के सुधार के लिए होता है जबकि लैंस का निचला हिस्सा निकट दृष्टि दोष के लिए होता है। प्रोग्रेसिव प्रकार के लैंस बायफोकल लैंस के समान होते हैं लेकिन उनके बीच कोई लकीर नजर नहीं आती। इसको पहन सकते हैं।

जांचें – इसकी जांच भी आंखों की दूसरी बीमारियों की तरह ही होती है। डॉक्टर, पहले आंखों में दवा डालकर पुतलियों को फैलाते हैं। इसके बाद तेज रोशनी में आंखों की जांच करते हैं। इस प्रक्रिया में करीब एक घंटे का समय लगता है। इसके अलावा भी डॉक्टर कुछ अन्य टैस्ट भी करवाते हैं।

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