लाइपोमा के स्पष्ट कारणों का पता अभी तक नहीं चला है। लेकिन दो मुख्य कारणों से यह समस्या सामने आती है। पहला लाइपोमेटोसिस, जो आनुवांशिक समस्या है। इसमें त्वचा-मांसपेशियों के बीच के हिस्से में गांठ बनती है। दूसरा मोटापा, जिसमें चर्बी वाली कोशिकाएं शरीर के विभिन्न हिस्सों में किसी एक जगह एकत्र होकर धीरे-धीरे गांठ का रूप लेती हैं। इनके अलावा जो लोग अधिक फास्ट फूड, डीप फ्रिज में रखा भोजन, मिठाई, नमकीन, बटर, घी, चीज और या फिर इनके साथ कोल्डड्रिंक अधिक पीते हैं उनमें इस तरह की गांठें बनने की आशंका अधिक होती है।
आयुर्वेद में गुनगुना पानी पीने, सुपाच्य भोजन करने की सलाह देते हैं। पंचकर्म, शोधनवस्ती प्रक्रिया के अलावा उभार कम करने के लिए गांठ पर औषधियों का लेप लगाते हैं। कई बार चीरा लगाकर गांठ में मौजूद गाढ़े तत्त्व को निकालकर शोधन औषधियों का लेप लगाते हैं ताकि समस्या दोबारा न हो। होम्योपैथी में इसे साइकोटिक मियाज्म रोग कहते हैं। लक्षणों के अनुसार कैलकेरिया व लैपीसाइलबाई दवा रोगी को देते हैं।
शरीर के किसी भी अंग में गांठ उभरे तो डॉक्टरी सलाह जरूरी लें। कई बार गांठ के बने रहने से व्यक्ति तनाव में रहने लगता है जिससे स्थिति बिगड़ सकती है। सिकाई न करें
शरीर पर बनी कोई भी गांठ की सिकाई बिना डॉक्टरी सलाह के न करें। खासकर यदि गांठ लाइपोमा की और उसके अंदर का फैट दबने पर इधर से उधर हो तो। इन गांठों को लेकर लोग सोचते हैं कि सिकाई से ये सिकुड़ कर कम हो जाएंगी। जबकि ऐसा नहीं है। सिकाई करने से भीतर की चर्बी जलती है व अंदर ही अंदर जानलेवा संक्रमण हो सकता है।
लाइपोमा यदि नसों पर उभर जाए तो इनमें दर्द होने लगता है। ऐसे में वजह जानने के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई, एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड जांच कराई जाती है। सर्जरी से दर्द वाली गांठों का इलाज होता है व जल्द से जल्द इन्हें निकलवा देना चाहिए। वहीं शरीर पर कोई गांठ ऐसी बनी हो जो दर्द नहीं कर रही है और ठोस है तो सतर्क होने की जरूरत है। ये गांठ कैंसर की हो सकती है। ऐसे में विशेषज्ञ तुरंत फाइन निडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी (एफएनएसी) जांच कराने की सलाह देते हैं। कुछ मामलों में गांठ की बायोप्सी जांच के तहत इसके अंदर सुई डालकर कुछ हिस्सा बाहर निकाल लेते हैं। इसमें मौजूद लिक्विड व अन्य पदार्थ की जांच कर पता करते हैं कि वे कैंसर है या नहीं।