क्षमता से अधिक खर्च करना, बात-बात पर शेरो-शायरी या दोस्तों व घरवालों के सामने बड़ी-बड़ी डींगें हांकना, किसी बात या पद का घमंड जताना, बेमतलब नई-नई योजनाएं बनाना जैसी आदतें इस मेनिया के रोगी में होती है। व्यक्ति हर बात पर उत्साहित व ज्यादा प्रसन्न रहता है। साथ ही दिमाग में नई-नई योजनाएं बनाते हुए उन्हें शुरू तो करता है लेकिन समय पर पूरा नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्ति नए व रंग-बिरंगे कपड़ों के प्रति आकर्षित होते हैं।
इसलिए बढ़ती दिक्कत
दिमाग में रासायनिक तत्त्व सिरोटोनिन व नोरेपीनेफ्रीन में गड़बड़ी से इस तरह के लक्षण दिखते हैं। इसे सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर भी कहते हैं। क्योंकि कई बार मौसम के बदलाव से पीनियल ग्रंथि द्वारा निर्मित मेलाटोनिन हार्मोन या तो बढ़ जाता है या फिर इसकी असामान्यता मूड डिसऑर्डर का कारण बनती है। गर्मी की तुलना में सर्दी में इसके मामले ज्यादा हैं। ऐसे में आराम व काम के बीच बढ़ता तनाव डिप्रेशन का रूप लेकर खत्म होते-होते व्यक्ति को मेनिया का रोगी बना देता है।
इलाज का अभाव परेशानी की वजह
दिमाग में होने वाले इस रासायनिक परिवर्तन से व्यक्ति के विचारों व व्यवहार में स्वयं का नियंत्रण कम हो जाता है जिससे उसकी इच्छा हर किसी से बात करने की व डींकें हांकने की बनती है। इस समस्या से पीड़ित रोगी की पहचान आसानी से नहीं हो पाती। ऐसे में स्थिति गंभीर होने पर मरीज कभी कभार एक्सीडेंट, मारपीट, झगड़ा, हिंसा, पैसों की बेवजह बर्बादी, घर से भागने की प्रवृत्ति से गुजरता है। मूड स्टेब्लाइजर, एंटीसाइकोटिक व नींद की दवा से इस मनोरोग का इलाज संभव है।