
बीमारी की सटीक जानकारी के लिए यह जांच होती है। पहली बार एमआरआई का प्रयोग वर्ष 1977 में कैंसर की जांच में हुआ था।
एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल मस्तिष्क, हड्डियों व मांसपेशियों, सॉफ्ट टिश्यू, चेस्ट, ट्यूमर-कैंसर, स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, धमनियों के ब्लॉकेज और जेनेटिक डिस्ऑर्डर का पता लगाने में होता है। बीमारी की सटीक जानकारी के लिए यह जांच होती है। पहली बार एमआरआई का प्रयोग वर्ष 1977 में कैंसर की जांच में हुआ था।
क्या है एमआरआई
मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) मशीन बॉडी को स्कैन कर अंग के किस हिस्से में दिक्कत है ये जानकारी देती है। इसमें मैग्नेटिक फील्ड व रेडियो तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के अंदर के अंगों की विस्तार से इमेज तैयार करती हैं।
क्या है तकनीक
शरीर में सबसे अधिक पानी होता है। पानी के हर मॉलिक्यूल में दो हाइड्रोजन प्रोटोन होते हैं। एमआरआई स्कैनिंग के दौरान पावरफुल मैग्नेटिक फील्ड बनता है। हाइड्रोजन के प्रोटोन मैग्नेटिक फील्ड से जुड़कर शरीर के अंगों की इमेज बनाने लगते हैं। जांच में करीब आधा घंटा लगता है।
घबराएं नहीं रोगी
जांच के दौरान होने वाली आवाज से परेशान होने की जरूरत नहीं है। इससे न तो दर्द होता है और ना ही नुकसान। अगर आवाज बहुत तेज है तो टेक्नीशियन से कान में इयरप्लग लगवा सकते हैं।
सीटी स्कैन से बेहतर एमआरआई
कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन से एमआरआई बेहतर है। इसमें शरीर के अंग की अंदरूनी स्थिति की साफ तस्वीर मिलती है। इसमें रेडिएशन नहीं होता है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं की भी यह जांच होती है।
एमआरआई जांच करवाने से पहले मरीज को कुछ खास तैयारियां नहीं करनी पड़तीं। अस्पताल पहुंचते ही सबसे पहले डॉक्टर मरीज को गाउन बदलने को कहते हैं। मरीज को शरीर पर पहनी एक्सेसरीज जैसे ज्वैलरी या अन्य मेटेलिक चीजें भी उतारने की सलाह दी जाती हैं। दरअसल, एमआरआई तकनीक के दौरान चुंबक का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि जांच के दौरान वस्तु से टकराकर समस्या उत्पन्न कर सकता है। नतीजतन, इमेज की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव हो सकता है।
Published on:
25 Nov 2017 06:28 pm
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