ओ.एस.ओ. का असर
इसमें कई बीमारियां जैसे ऑस्टियोपिनिया, सारकोपिनिया व मोटापा शामिल हैं। इस सिंड्रोम की शुरुआत होते ही मरीज की दिनचर्या प्रभावित होने लगती है। मरीज कमजोर होने लगता है।
– ऑस्टियोपिनिया: इसमें हड्डियों का भुरभुरा होना, घिस जाना और साधारण चोट से फै्रक्चर होना।
– सारकोपिनिया: मांसपेशियों की शक्ति में कमी व शरीर पतला होना।
– मोटापा: शरीर में चर्बी का बढ़ना (खासतौर से पेट व निचले हिस्से में) व अन्तिम अवस्था में वसा का हड्डियों तथा मांसपेशियों में जमा होना है।
इसमें कई बीमारियां जैसे ऑस्टियोपिनिया, सारकोपिनिया व मोटापा शामिल हैं। इस सिंड्रोम की शुरुआत होते ही मरीज की दिनचर्या प्रभावित होने लगती है। मरीज कमजोर होने लगता है।
– ऑस्टियोपिनिया: इसमें हड्डियों का भुरभुरा होना, घिस जाना और साधारण चोट से फै्रक्चर होना।
– सारकोपिनिया: मांसपेशियों की शक्ति में कमी व शरीर पतला होना।
– मोटापा: शरीर में चर्बी का बढ़ना (खासतौर से पेट व निचले हिस्से में) व अन्तिम अवस्था में वसा का हड्डियों तथा मांसपेशियों में जमा होना है।
कारण
ओएसओ सिंड्रोम के मुख्य रूप से तीन कारण होते हैं। इनमें बढ़ती उम्र यानी 45 -50 साल के बाद इसकी आशंका बढ़ जाती है। बढ़ती उम्र के कारण होने वाले हार्मोनल बदलाव और मोटापा है। यही वजह है कि महिलाओं में मेनोपॉज के बाद यह समस्या अधिक हो जाती है।
ओएसओ सिंड्रोम के मुख्य रूप से तीन कारण होते हैं। इनमें बढ़ती उम्र यानी 45 -50 साल के बाद इसकी आशंका बढ़ जाती है। बढ़ती उम्र के कारण होने वाले हार्मोनल बदलाव और मोटापा है। यही वजह है कि महिलाओं में मेनोपॉज के बाद यह समस्या अधिक हो जाती है।
कैसे पहचानें?
शरीर के बीच के हिस्से में मोटापा, थुलथुलापन व हाथ पांवों का पतला व कमजोर होना इसके मुख्य लक्षण हैं। शरीर में स्फूर्ति की कमी, आलस होना, उठने-बैठने में सहारा लेना, बार-बार गिर जाना व हल्की चोट से भी हड्डियों का फै्रक्चर हो जाना, धीमी चाल व चलते समय अपना संतुलन खोना भी इसके लक्षण हैं। इस वजह से डायबिटिज, गुर्दारोग, पाचन शक्ति में कमी भी होने लगती है।
शरीर के बीच के हिस्से में मोटापा, थुलथुलापन व हाथ पांवों का पतला व कमजोर होना इसके मुख्य लक्षण हैं। शरीर में स्फूर्ति की कमी, आलस होना, उठने-बैठने में सहारा लेना, बार-बार गिर जाना व हल्की चोट से भी हड्डियों का फै्रक्चर हो जाना, धीमी चाल व चलते समय अपना संतुलन खोना भी इसके लक्षण हैं। इस वजह से डायबिटिज, गुर्दारोग, पाचन शक्ति में कमी भी होने लगती है।
हैल्दी डाइट बहुत जरूरी
इसमें सामान्य की तुलना में अधिक हैल्दी डाइट की जरूरत पड़ती है। मरीज रोज प्रति किलोग्राम बॉडी वेट के अनुसार 1.5 ग्राम प्रोटीन लें। इसके लिए सोयाबीन, दालें, दही, सूखे मेवे, अंडा लें। इसी तरह 1200 मि.ग्रा. कैल्शियम के लिए दही, दूध (लो-फैट), पनीर खाएं। विटामिन डी के लिए अलग से सप्लीमेन्ट्स लें और मछली खाएं। सुबह की धूप में बैठें। साथ ही अलसी बीज और हरी सब्जियां खूब खाएं।
इसमें सामान्य की तुलना में अधिक हैल्दी डाइट की जरूरत पड़ती है। मरीज रोज प्रति किलोग्राम बॉडी वेट के अनुसार 1.5 ग्राम प्रोटीन लें। इसके लिए सोयाबीन, दालें, दही, सूखे मेवे, अंडा लें। इसी तरह 1200 मि.ग्रा. कैल्शियम के लिए दही, दूध (लो-फैट), पनीर खाएं। विटामिन डी के लिए अलग से सप्लीमेन्ट्स लें और मछली खाएं। सुबह की धूप में बैठें। साथ ही अलसी बीज और हरी सब्जियां खूब खाएं।
बचाव ही इलाज
कुछ मामलों में हार्मोन थैरपी कारगर है लेकिन इसमें हैल्दी डाइट और नियमित व्यायाम भी इलाज के रूप में शामिल किया जाता है। निर्धारित मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी सप्लीमेंट भी मरीज को दिया जाता है। इसकी पहचान के लिए डॉक्टर कुछ जांचें भी करवाते हैं।
कुछ मामलों में हार्मोन थैरपी कारगर है लेकिन इसमें हैल्दी डाइट और नियमित व्यायाम भी इलाज के रूप में शामिल किया जाता है। निर्धारित मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी सप्लीमेंट भी मरीज को दिया जाता है। इसकी पहचान के लिए डॉक्टर कुछ जांचें भी करवाते हैं।
व्यायाम है जरूरी
मांसपेशियों की शक्ति, हड्डियों की मजबूती और वजन कम करने के लिए नियमित रूप से सभी तरह के व्यायाम जरूरी हैं। रोजाना 3-5 किमी तक तेज गति से सुबह टहलें। सीढ़ियां चढ़ना, ऐरोबिक्स, तैराकी, टेनिस खेलना आदि भी लाभकारी हैं। घरेलू कार्यों में रुचि, बागवानी और योग से भी शरीर को सुदृढ़ और सुडौल बना सकते हैं।
मांसपेशियों की शक्ति, हड्डियों की मजबूती और वजन कम करने के लिए नियमित रूप से सभी तरह के व्यायाम जरूरी हैं। रोजाना 3-5 किमी तक तेज गति से सुबह टहलें। सीढ़ियां चढ़ना, ऐरोबिक्स, तैराकी, टेनिस खेलना आदि भी लाभकारी हैं। घरेलू कार्यों में रुचि, बागवानी और योग से भी शरीर को सुदृढ़ और सुडौल बना सकते हैं।