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पाइल्स की समस्या से एेसे बचें, जानें ये काम की बातें

मरीज को पाइल्स का पता नहीं चलता है। खारिश महसूस होना, मस्से व जोर लगाने पर खून आ सकता है। 14 प्रतिशत शहरी लोग कब्ज से परेशान हैं। 10% लोग पूरी दुनिया में कब्ज पीड़ित हैं। 100 में से 70-80% महिलाओं को होती है यह समस्या। मुख्य कारण पेल्विक फ्लोर मसल्स का प्रसव बाद कमजोर होना है।

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जयपुर

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Vikas Gupta

Dec 04, 2019

पाइल्स की समस्या से एेसे बचें, जानें ये काम की बातें

Piles: Symptoms, causes, and treatments

बवासीर में गुदा मार्ग के अंदर व बाहरी हिस्से में सूजन से होती है। इस वजह से उसके अंदर व बाहरी हिस्से में मस्से बनते हैं। मल विसर्जन में दर्द व खून की दिक्कत होती है। मस्से बाहर की ओर आ जाते हैं। फिशर भी गुदा रोग है। इसमें गुदा में व आसपास के हिस्से में दरारें व कट हो जाते हैं। फिस्टुला में गुदा के आसपास छिद्र होने से उसमें तेज दर्द, सूजन, लाल त्वचा, कब्ज और मल-त्याग के समय खून आ सकता है। इलाज समय से नहीं होने से यह कैंसर और आंतों की टी.बी. का कारण बन सकती है।

पहली स्टेज में मरीज को पता नहीं चल पाता -
पहली स्टेज में पाइल्स के लक्षण दिखाई नहीं देते। मरीज को हल्की खारिश महसूस होना, गुदा के अंदर मस्से व जोर लगाने पर हल्का खून आ सकता है। दूसरी स्टेज में मल त्याग के वक्त मस्से बाहर आने लगते हैं। इसमें दर्द व खून आता है। तीसरी स्टेज में मस्से बाहर की ओर आ जाते हैं। मरीज को तेज दर्द व मल के साथ खून ज्यादा आता है। आखिरी स्टेज में मस्से बाहर की ओर लटक जाते हैं। संक्रमण का भी खतरा रहता है।

असमय खानपान, मिर्च-मसालेदार चीजें खाने, तनाव, खराब जीवनशैली की वजह से दिक्कत होती है। भोजन में फाइबर व प्रोटीन युक्त चीजें लें। जैसे मौसमी, हरी सब्जियां, सोयाबीन, दालें, दानामेथी, अलसी के बीज आदि। डिब्बाबंद चीजों से जितना हो सके परहेज करें। शाकाहारी भोजन लें।

योग से फायदा -
पाइल्स का पहली और दूसरी स्टेज में मैडिटेशन, योग, आयुर्वेद और दवाओं से किया जा सकता है। इससे पूरी तरह से राहत मिलना संभव है। सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। तीसरी और चौथी स्टेज में सर्जरी की जाती है। इसमें एंडोस्कोपी से इलाज आसान है।

आयुर्वेद में क्षार सूत्र से करते इलाज -
आयुर्वेद में पाइल्स, फिस्टुल के इलाज में छाछ दवा की तरह काम करती है। पाइल्स की प्रथम व द्वितीय स्टेज में दवा और खानपान में बदलाव से राहत मिलती है। कब्ज दूर करने व भूख लगने के लिए चावल व मूंग दाल का पानी पीने की सलाह देते हैं। तीसरे व चौथे चरण में क्षार सूत्र से इलाज करते हैं। सामान्यत: मरीज को भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती है।

वीएएएफटी उपचार का नया तरीका -
वीडियो असिस्टेड एनल फिस्टुला ट्रीटमेंट (वीएएएफटी) दर्द रहित सर्जरी है। माइक्रो एंडोस्कोपी से इलाज करते हैं। इसमें जख्म नहीं होता है। ओपन सर्जरी में मांसपेशियों को नुकसान व दोबारा घाव की आशंका रहती है। इस सर्जरी से होने वाले जख्म को भरने में छह सप्ताह से लेकर तीन माह का समय लग सकता है।

नजरअंदाज न करें -
अक्सर पेट या मोशन संबंधी किसी परेशानी में चूर्ण या आयुर्वेदिक उपचार अपनाते हैं। हालांकि इनसे फर्क पड़ता है। लेकिन आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह बिना चूर्ण लेना स्थिति गंभीर कर सकता है। महिलाओं में यूरिन न रुकने की व मोशन संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं।

डिलीवरी बाद दिक्कतें -
कब्ज, एनस पर मवाद, सख्त मल की समस्या, तला-भुना, तेज मिर्च-मसाले, मैदा का इस्तेमाल करने से समस्या बढ़ती है। गर्भावस्था और प्रसव के बाद पाइल्स की समस्या होने की ज्यादा आशंका रहती है। समाज में भ्रांतियों, संकोच, सर्जरी से बड़े घाव का डर जैसे कारणों से मरीज इलाज के लिए देरी से आते हैं।

बीजयुक्त सब्जी न खाएं -
मौसमी सब्जियां, फल, फाइबर युक्त आहार लें। बीजयुक्त सब्जियां न खाएं। रोजाना रात को गर्म पानी के साथ एक चम्मच त्रिफला चूर्ण और एक चम्मच भूसी गर्म दूध के साथ लेने से आराम मिलेगा। छोटी हरड़ घी में फुलाकर पाउडर बनाकर पानी के साथ लेने से फायदा होगा।

बाहर निकले मस्सों को सर्जरी से करते हैं अंदर -
नई तकनीक स्टेपलर सर्जरी और लेजर द्वारा बाहर निकले मस्सों को अंदर की ओर किया जाता है। रक्त प्रवाह रोक देते हैं। इससे टिश्यू सिकुड़ते हैं। लेजर तकनीक को मिनिमल इनवेसिव ट्रीटमेंट कहते हैं। दूरबीन की प्रक्रिया के साथ इसकी तुलना की जा सकती है। इस तकनीक में कुछ मिलीमीटर का फाइबर होता है, जिसे प्रभावित क्षेत्र पर स्पर्श करवाया या जगह पर रखा जाता है। फिशर में दवाइयों और इलाज से घाव ठीक नहीं होने पर लेजर से इलाज संभव है। सर्जरी में टांका या चीरा नहीं आता है। सर्जरी के दिन ही मरीज को घर भेज देते हैं। 3 से 5 दिन में दिनचर्या शुरू कर सकते हैं। सर्जरी से पहले फिस्टुला की जांच में डिजिटल एनस टेस्ट, फिस्टुलोग्राम व एमआरआई जांच की जाती है।

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी व्यक्ति का मल बहुत कड़ा हो जाता है और मलत्याग में कठिनाई होती है। पेट साफ नहीं हो पाता है। ज्यादा जोर लगाने से भी स्टूल पास नहीं होता है। महिलाओं में प्रसव बाद कूल्हे व आसपास की नसें कमजोर होती हैं। इसलिए पाइल्स की आशंका ज्यादा रहती है।