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शरीर के कई अंगाें काे प्रभावित करती है इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी

locationजयपुरPublished: Jul 12, 2019 06:07:41 pm

शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम) का काम नुकसान पहुंचाने वाली बाहरी चीजें जैसे बैक्टीरिया, संक्रमण आदि से बचाना है

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शरीर के रोग प्रतिरोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम) का काम नुकसान पहुंचाने वाली बाहरी चीजें जैसे बैक्टीरिया, संक्रमण आदि से बचाना है। शरीर में इनके पहुंचते ही इम्यून सिस्टम इनसे लड़ता है। लेकिन कुछ स्थितियों में ये तंत्र इन बाहरी पदार्थों को पहचान नहीं पाता और शरीर के विरुद्ध काम करने लगता है। ऐसे में शरीर व इसके अंगों में दिक्कत होने लगती है। इसे ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं। सिस्टेमिक लुपस एरेथीमेटोसस (एसएलई) रोग भी इसका एक प्रकार है। इससे पीडि़त 100 मरीजों में से 90 महिलाएं (18-40 साल) और 10 पुरुष होते हैं। इस रोग के लक्षण दूसरी बीमारियों से मिलते-जुलते हैं। ज्यादातर मामलों में पीडि़त इसके लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं जिस कारण ये बीमारी शरीर के मुख्य अंगों को प्रभावित करने लगती है।
कई कारण हो सकते हैं
इस बीमारी का कारण अब तक पता नहीं चल सका है। हालांकि कुछ कारण ऐसे हैं जो एक बार होने पर इस समस्या को बढ़ा सकते हैं जैसे फैमिली हिस्ट्री, अल्ट्रावॉयलेट किरणें, कुछ खास दवाएं, वायरस और तनाव।
लक्षण : थकान व एक माह से अधिक बुखार रहना

एसएलई हृदय, दिमाग, फेफड़े, किडनी, स्किन जैसे अंगों को प्रभावित कर सकता है। इसमें सबसे ज्यादा किडनी प्रभावित होती है। ज्यादातर मामलों में लक्षण नाक और गाल पर लाल रंग के चकत्ते पड़ना है। जो कि एक तितली के आकार में दिखते हैं। एक महीने से अधिक बुखार रहना और कारण सामने न आना, अधिक थकान लगना, जोड़ों में दर्द और सूजन, सिरदर्द, बालों का गिरना, सर्दियों में अंगुलियों का नीला पड़ना जैसे लक्षण सामने आ सकते हैं। इसके अलावा पीडि़त के सूरज की रोशनी में जाते ही एलर्जी बढ़ जाती है।

यूरिन सैंपल से जांच
स्किन पर रैशेज देखने के बाद इसकी पुष्टि करने के लिए यूरिन सेंपल लेकर जांच की जाती है क्योंकि यह रोग स्किन के बाद सबसे ज्यादा किडनी को प्रभावित करता है। समय पर जांच न होने पर किडनी में मौजूद ग्लोमेरुलस (जो एक छल्नी की तरह काम करता है) में खराबी के कारण यूरिन में प्रोटीन और ब्लड आने जैसी दिक्कत हो सकती है।
गंभीरता : ये अंग प्रभावित
समय से इलाज न होने पर कई अंग प्रभावित होते हैं।
हृदय : धमनियों या हृदय की कोशिकाओं में सूजन, थक्के जमना, हार्ट अटैक व स्ट्रोक आदि।
मस्तिष्क : याददाश्त घटना, दौरे पडऩा और व्यवहार में बदलाव।
किडनी : बॉडी के तरल पदार्थों को फिल्टर करने वाले ग्लोमेरुलस में खराबी, गुर्दे में सूजन और कार्यक्षमता घटने से किडनी फैल्योर होना।
फेफड़े : इस अंग के ऊत्तक और इसकी लाइनिंग में सूजन होना।
इलाज
इस रोग में शरीर का रोग प्रतिरोधी तंत्र अधिक सक्रिय हो जाता है। ऐसे में इम्यूनोसप्रेसिव दवाइयां देकर इसे सामान्य करते हैं। स्किन पर रैशेज कम करने के लिए स्टेरॉयड्स और किडनी से अधिक प्रोटीन बाहर न निकले की स्थिति में दवाएं दी जाती हैं।
सावधानी
– ज्यादातर मामलों में यह समस्या जीवनभर रहती है। ऐसे में दवाएं ताउम्र लेनी पड़ती है। इनमें गैप न दें वरना समस्या बढ़ भी सकती है।
– अगर किसी महिला को यह दिक्कत है तो प्रेग्नेंसी से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लेनी चाहिए क्योंकि इस रोग से होने वाला बच्चा भी प्रभावित हो सकता है।
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