इस बीमारी का कारण अब तक पता नहीं चल सका है। हालांकि कुछ कारण ऐसे हैं जो एक बार होने पर इस समस्या को बढ़ा सकते हैं जैसे फैमिली हिस्ट्री, अल्ट्रावॉयलेट किरणें, कुछ खास दवाएं, वायरस और तनाव।
यूरिन सैंपल से जांच
स्किन पर रैशेज देखने के बाद इसकी पुष्टि करने के लिए यूरिन सेंपल लेकर जांच की जाती है क्योंकि यह रोग स्किन के बाद सबसे ज्यादा किडनी को प्रभावित करता है। समय पर जांच न होने पर किडनी में मौजूद ग्लोमेरुलस (जो एक छल्नी की तरह काम करता है) में खराबी के कारण यूरिन में प्रोटीन और ब्लड आने जैसी दिक्कत हो सकती है।
समय से इलाज न होने पर कई अंग प्रभावित होते हैं।
हृदय : धमनियों या हृदय की कोशिकाओं में सूजन, थक्के जमना, हार्ट अटैक व स्ट्रोक आदि।
मस्तिष्क : याददाश्त घटना, दौरे पडऩा और व्यवहार में बदलाव।
किडनी : बॉडी के तरल पदार्थों को फिल्टर करने वाले ग्लोमेरुलस में खराबी, गुर्दे में सूजन और कार्यक्षमता घटने से किडनी फैल्योर होना।
फेफड़े : इस अंग के ऊत्तक और इसकी लाइनिंग में सूजन होना।
इस रोग में शरीर का रोग प्रतिरोधी तंत्र अधिक सक्रिय हो जाता है। ऐसे में इम्यूनोसप्रेसिव दवाइयां देकर इसे सामान्य करते हैं। स्किन पर रैशेज कम करने के लिए स्टेरॉयड्स और किडनी से अधिक प्रोटीन बाहर न निकले की स्थिति में दवाएं दी जाती हैं।
– ज्यादातर मामलों में यह समस्या जीवनभर रहती है। ऐसे में दवाएं ताउम्र लेनी पड़ती है। इनमें गैप न दें वरना समस्या बढ़ भी सकती है।
– अगर किसी महिला को यह दिक्कत है तो प्रेग्नेंसी से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लेनी चाहिए क्योंकि इस रोग से होने वाला बच्चा भी प्रभावित हो सकता है।