
Right care is the treatment in Down syndrome
डाउन सिंड्रोम से पीड़ुत बच्चे भले ही चीजों को समझने में समय लगाएं लेकिन वे भी समझदार होते हैं। डाउन सिंड्रोम के लक्षणों को ब्रिटिश डॉ. जॉन लैंग्डन डाउंस ने वर्गीकृत किया था इसलिए इनके नाम पर इस विकार का नाम रखा गया।
यह है समस्या -
बच्चों से जुड़ी इस गंभीर समस्या में उनका शारीरिक व मानसिक विकास आम बच्चों की तरह नहीं हो पाता। व्यक्तित्व में विकृतियां दिखने के बावजूद देखभाल व प्यार से इन्हें सामान्य जीवन दे सकते हैं। लड़कों में इस रोग के मामले ज्यादा सामने आते हैं। कई बार इनमें रीढ़ की हड्डी में विकृति, सुनने व देखने की क्षमता में कमी भी पाई जाती है।
लक्षण -
कमजोर मांसपेशियों में बढ़ती उम्र के साथ ताकत आना, सामान्य बच्चों की तुलना में बैठने, चलने, उठने या सीखने में अधिक समय लगना, चेहरा सपाट व छोटे कान अहम हैं।
प्रमुख कारण -
सामान्य रूप से शिशु 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है। लेकिन रोगी में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम आ जाता है जिससे शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है। प्रेग्नेंसी के 13 या 14 हफ्ते में डाउन सिंड्रोम स्क्रीनिंग टैस्ट से रोग की पहचान कर इसकी आशंका कम कर सकते हैं।
सकारात्मक व्यवहार-
शारीरिक व मानसिक स्तर पर मजबूत बनाने के लिए पेरेंट्स उन्हें हर छोटी-छोटी एक्टिविटी में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। मानसिक-बौद्धिक विकास के लिए विशेषज्ञ से सलाह लें। सकारात्मक व्यवहार अपनाएं।
इस तरह इलाज -
ऐसे बच्चों का पूर्ण इलाज संभव नहीं लेकिन देखभाल व प्यार से उनकी केयर की जा सकती है। पहले बच्चे में यदि यह समस्या है तो दूसरी प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले क्रोमोसोमल टैस्ट जरूर कराएं। पौष्टिक चीजें खाएं। बच्चे को डांटें नहीं और न ही उसकी तुलना किसी अन्य से करें।
Published on:
20 Oct 2019 06:09 pm
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