Septicemia - खून में इंफेक्शन से फैलता है सेप्टीसीमिया, ये हाेते हैं लक्षण
चोट या घाव पर एंटीबायोटिक लगाने के दौरान बुखार आए, कमजोरी, पसीना या ब्लड प्रेशर कम हो तो यह इमरजेंसी वाली स्थिति हो सकती है

शरीर के किसी भी हिस्से में चोट या घाव होने पर जब इंफेक्शन रक्त के जरिए विभिन्न अंगों तक फैल जाए तो यह स्थिति सेप्टीसीमिया ( septicemia ) कहलाती है। यह कई तरह से और किसी रोग का समय पर इलाज न लेने से होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर भी यह संक्रमण तेजी से फैलता है। जानें इससे बचाव के उपाय -
रोग के प्रमुख कारण लापरवाही
आमतौर पर होने वाले सर्दी-जुकाम का यदि समय पर इलाज नहीं होता है तो बैक्टीरियल व वायरल इंफेक्शन गले से होते हुए फेफड़ों तक पहुंच जाता है। इस वजह से यह निमोनिया की स्थिति को जन्म दे देता है। ऐसा ही जब शरीर पर लगी किसी चोट पर पट्टी न कराई जाए या घाव का इलाज न लिया जाए तो इसमें मवाद भरने लगता है जिससे रक्त में विषैले तत्त्वों की संख्या बढ़ जाती है और यह सेप्टीसीमिया का रूप ले लेता है।
असुरक्षित प्रसव
ग्रामीण इलाकों के अलावा जब गर्भवती महिला की डिलीवरी सुरक्षित रूप से नहीं हो पाती तो भी उसमें इंफेक्शन के कारण सेप्टीसीमिया की आशंका रहती है। इसके अलावा पुरानी ब्लेड से यदि नाल काटी जाए तो मां और बच्चा दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
ये होती हैं दिक्कतें
संक्रमण के पूरे शरीर में फैलने से ब्लड प्रेशर का कम होना, हृदय गति बढ़ना, सांस तेज होना, अत्यधिक पसीना आना, कमजोर महसूस होना या बेहोशी छाना, ज्यादा नींद आना बीमारी के प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। कई मामलों में शरीर में पानी की कमी भी इससे हो जाती है। एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स न लेने पर दिक्कत बढ़ सकती है।
- बैक्टीरिया या वायरस का रक्त के जरिए अंग पर असर करना।लापरवाही बरतने या इलाज के अभाव में संक्रमण का खून में फैलना।कीटाणुओं की संख्या बढ़ने से रक्तवाहिनियों का क्षतिग्रस्त होना।
- रक्तवाहिनियों के क्षतिग्रस्त होने से संक्रमण का शरीर के अन्य प्रमुख अंगों पर असर डालना।
- रोग में यदि फेफड़े, किडनी व लिवर प्रभावित हों तो जानलेवा स्थिति बनती है।
अधिक खतरा
मधुमेह रोगी, क्रॉनिक रोगों वाले रोगी, यूरिन या डायलिसिस के लिए कैथेटर डला हो, लंबे समय बाद अस्पताल से डिस्चार्ज मरीज, शिशु, बुजुर्ग, गर्भवती महिला।
इलाज
लक्षण दिखते ही तुरंत आईसीयू में भर्ती करते हैं। हृदय गति, पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को मॉनिटर करते हैं। हीमोग्राम, कल्चर टैस्ट, यूरिन, किडनी और लिवर की जांचों के बाद 7-10 दिनों की एंटीबायोटिक दवा की डोज देते हैं।
होम्योपैथी
रक्त के शुद्धिकरण के लिए आर्सेनिक एल्बम व बैक्टीशिया दवा लक्षणों के अनुसार देते हैं। असर रोगी के दिमाग तक हो तो बेलाडोना देते हैं। मरीज की अवस्था और रोग की गंभीरता के आधार पर दवा तय की जाती है।
लापरवाही न बरतें ( septicemia cure )
एंटीबायोटिक दवा का पूरा कोर्स डॉक्टरी परामर्श से लें। मानसून में कोई चोट लगी है तो बैक्टीरिया से बचाव के लिए चप्पल पहनकर घर से बाहर निकलें। शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें। इसके अलावा किसी चोट या घाव पर एंटीबायोटिक लगाने के दौरान बुखार आए, कमजोरी, पसीना या ब्लड प्रेशर कम हो तो यह इमरजेंसी वाली स्थिति हो सकती है।
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