आमतौर पर होने वाले सर्दी-जुकाम का यदि समय पर इलाज नहीं होता है तो बैक्टीरियल व वायरल इंफेक्शन गले से होते हुए फेफड़ों तक पहुंच जाता है। इस वजह से यह निमोनिया की स्थिति को जन्म दे देता है। ऐसा ही जब शरीर पर लगी किसी चोट पर पट्टी न कराई जाए या घाव का इलाज न लिया जाए तो इसमें मवाद भरने लगता है जिससे रक्त में विषैले तत्त्वों की संख्या बढ़ जाती है और यह सेप्टीसीमिया का रूप ले लेता है।
ग्रामीण इलाकों के अलावा जब गर्भवती महिला की डिलीवरी सुरक्षित रूप से नहीं हो पाती तो भी उसमें इंफेक्शन के कारण सेप्टीसीमिया की आशंका रहती है। इसके अलावा पुरानी ब्लेड से यदि नाल काटी जाए तो मां और बच्चा दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
संक्रमण के पूरे शरीर में फैलने से ब्लड प्रेशर का कम होना, हृदय गति बढ़ना, सांस तेज होना, अत्यधिक पसीना आना, कमजोर महसूस होना या बेहोशी छाना, ज्यादा नींद आना बीमारी के प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। कई मामलों में शरीर में पानी की कमी भी इससे हो जाती है। एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स न लेने पर दिक्कत बढ़ सकती है।
मधुमेह रोगी, क्रॉनिक रोगों वाले रोगी, यूरिन या डायलिसिस के लिए कैथेटर डला हो, लंबे समय बाद अस्पताल से डिस्चार्ज मरीज, शिशु, बुजुर्ग, गर्भवती महिला।
लक्षण दिखते ही तुरंत आईसीयू में भर्ती करते हैं। हृदय गति, पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को मॉनिटर करते हैं। हीमोग्राम, कल्चर टैस्ट, यूरिन, किडनी और लिवर की जांचों के बाद 7-10 दिनों की एंटीबायोटिक दवा की डोज देते हैं।
रक्त के शुद्धिकरण के लिए आर्सेनिक एल्बम व बैक्टीशिया दवा लक्षणों के अनुसार देते हैं। असर रोगी के दिमाग तक हो तो बेलाडोना देते हैं। मरीज की अवस्था और रोग की गंभीरता के आधार पर दवा तय की जाती है।
एंटीबायोटिक दवा का पूरा कोर्स डॉक्टरी परामर्श से लें। मानसून में कोई चोट लगी है तो बैक्टीरिया से बचाव के लिए चप्पल पहनकर घर से बाहर निकलें। शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें। इसके अलावा किसी चोट या घाव पर एंटीबायोटिक लगाने के दौरान बुखार आए, कमजोरी, पसीना या ब्लड प्रेशर कम हो तो यह इमरजेंसी वाली स्थिति हो सकती है।