नेशनल स्लीप फाउंडेशन, अमरीका के अनुसार साढ़े चार लाख युवाओं पर हुए शोध में पता चला कि रात की नींद अधूरी रहने से स्लीप डिसऑर्डर की शिकायत हुई। इससे कार्यकुशलता घटने के साथ दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई। नींद की कमी से ब्रेन अव्यवस्थित रहता है व स्लीप एप्निया भी होता है। इसमें सोने के दौरान सांस की गति पर असर होता है व शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं होती। स्लीप एप्निया ( Sleep Apnea ) के गंभीर होने से पार्किंसन डिजीज, इसोफिगल रिफलक्स, हार्मोन्स इंबैलेंस, हृदय रोग और ट्रॉमेटिक बे्रन इंजरी का खतरा रहता है।
महिलाओं में माहवारी से मेनोपॉज का समय शरीर में अहम हार्मोनल बदलाव का होता है। इससे नींद की प्रक्रिया बिगड़ती है। रेस्टलेस लैग सिंड्रोम, विटामिन की कमी और कुछ बीमारियों के लिए चल रही दवाओं के नियमित लेने से भी दुष्प्रभाव के रूप में नींद प्रभावित होती है। रात की नींद जबरदस्ती कंट्रोल करने से बेचैनी और एकाग्रता में कमी हो सकती है।
कई शोध में सामने आया कि करीब 90 मिनट के अंतराल में व्यक्ति चार तरह की नींद को महसूस करता है। इसमें पहली दो स्टेज, नींद में होने और जागने तक की होती है। इसे स्लो वेव स्लीप कहते हैं। इस दौरान व्यक्ति गहरी नींद से लेकर खुद जागने तक का अनुभव कर लेता है। इस स्टेज से बाहर आते ही व्यक्ति रेपिड आई मूवमेंट स्लीप से गुजरता है। जिसमें सभी मांसपेशियां स्तब्ध रहती हैं, केवल डायफ्राम एक्टिव रहता है ताकि सांस लेने व छोडऩे की क्रिया और गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट की गतिविधि सुचारू रूप से चलती रहे। इसके कुछ समय बाद ही व्यक्ति धुंधले सपनों से बाहर आकर पूरी तरह जागता है।