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Sleep Disorder: नारकोलेप्सी से बढ़ता है ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी का खतरा

locationजयपुरPublished: Oct 10, 2019 01:08:00 pm

Sleep Disorder: जबरदस्ती नींद कंट्रोल करने से सांस की गति पर पड़ता बुरा असर, मेडिकल फील्ड, बीपीओ या नाइट शिफ्ट की जॉब में ज्यादा होती है नारकोलेप्सी की समस्या

Sleep Disorder: Excessive Daytime Sleepiness Symptoms Is Narcolepsy

Sleep Disorder: नारकोलेप्सी से बढ़ता है ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी का खतरा

Sleep Disorder In Hindi: काम का अधिक तनाव व कुछ सीखने की लगन में अक्सर व्यक्ति खाने के अलावा अपनी नींद से भी समझौता करता दिखता है। ऐसे में खासतौर पर रात की नींद अधूरी रहने से व्यक्ति दिनभर उनींदा रहता है। यह स्थिति नारकोलेप्सी ( Narcolepsy ) की होती है जिसमें दिन की नींद पर नियंत्रण नहीं होता। इस दौरान उसकी सोच होती है वर्तमान समय में कुछ सीखने और कुछ कर दिखाने की। ऐसे में वे नींद बाद में पूरी करने की सोच बना लेते हैं। ऐसा मेडिकल फील्ड, बीपीओ या नाइट शिफ्ट की जॉब में ज्यादा होता है।
रोगों का बढ़ता खतरा ( Sleep Disorders Side Effects )
नेशनल स्लीप फाउंडेशन, अमरीका के अनुसार साढ़े चार लाख युवाओं पर हुए शोध में पता चला कि रात की नींद अधूरी रहने से स्लीप डिसऑर्डर की शिकायत हुई। इससे कार्यकुशलता घटने के साथ दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई। नींद की कमी से ब्रेन अव्यवस्थित रहता है व स्लीप एप्निया भी होता है। इसमें सोने के दौरान सांस की गति पर असर होता है व शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन की पूर्ति नहीं होती। स्लीप एप्निया ( Sleep Apnea ) के गंभीर होने से पार्किंसन डिजीज, इसोफिगल रिफलक्स, हार्मोन्स इंबैलेंस, हृदय रोग और ट्रॉमेटिक बे्रन इंजरी का खतरा रहता है।
दवाओं का दुष्प्रभाव ( Sleep Deprivation Can Lead to Serious Health Problems )
महिलाओं में माहवारी से मेनोपॉज का समय शरीर में अहम हार्मोनल बदलाव का होता है। इससे नींद की प्रक्रिया बिगड़ती है। रेस्टलेस लैग सिंड्रोम, विटामिन की कमी और कुछ बीमारियों के लिए चल रही दवाओं के नियमित लेने से भी दुष्प्रभाव के रूप में नींद प्रभावित होती है। रात की नींद जबरदस्ती कंट्रोल करने से बेचैनी और एकाग्रता में कमी हो सकती है।
चार तरह की नींद ( Phase Of The Sleep Cycle )
कई शोध में सामने आया कि करीब 90 मिनट के अंतराल में व्यक्ति चार तरह की नींद को महसूस करता है। इसमें पहली दो स्टेज, नींद में होने और जागने तक की होती है। इसे स्लो वेव स्लीप कहते हैं। इस दौरान व्यक्ति गहरी नींद से लेकर खुद जागने तक का अनुभव कर लेता है। इस स्टेज से बाहर आते ही व्यक्ति रेपिड आई मूवमेंट स्लीप से गुजरता है। जिसमें सभी मांसपेशियां स्तब्ध रहती हैं, केवल डायफ्राम एक्टिव रहता है ताकि सांस लेने व छोडऩे की क्रिया और गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट की गतिविधि सुचारू रूप से चलती रहे। इसके कुछ समय बाद ही व्यक्ति धुंधले सपनों से बाहर आकर पूरी तरह जागता है।
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