सीनियर न्यूरो सर्जन डॉ केके बंसल बताते हैं कि, स्पाइना बिफिडा दिमाग और रीढ़ की हड्डी में होने वाली जन्मजात विकृति होती है, जिसे जन्म से पहले ही पता किया जा सकता है। पैदा होने के बाद अगर बच्चे की पीठ में गांठ होती है, जिसमें पानी या अन्य टिश्यू भरे होते हैं वही स्पाइनल बिफिडा होता है।
तीन तरह का स्पाइना बिफिडा
स्पइाना बिफिडा तीन तरह का होता है, स्पाइना बिफिडा ओक्युल्टा, मेनिंगोसील और माइलोमेनिंगोसील। स्पाइना बिफिडा ओक्युल्टा में रीढ़ की हड्डियों में नुकसान पहुंचे बिना उसमें छेद हो जाता है, वहीं मोनिंगोसील रीढ़ की हड्डी में एक छेद होता है, जिसे मेरूरज्जु की सुरक्षा कवच में दबाव के कारण वो थैली के रूप में बाहर बनकर आ जाती है। इसमें मेरुरज्जु सुरक्षित रहती है और इसकी मरम्मत की जा सकती है। माइलोमेनिंगोसिल एक गंभीर स्पाइना बिफिडा का प्रकार है। इसमें मेरुरज्जु का एक हिस्सा पीठ की तरफ से बाहर निकल कर आ जाता है।
नवजात को हो जाता है लकवा
स्पाइना बिफिडा तंत्रिकीय नाल की विकृति है। दरार युक्त रीढ़ के पूरी तरह से घिरे न होने पर यह रोग होता है। यह रोग तब बहुत गंभीर होता है, जब दरार वाली जगह के नीचे की पेशियां कमजोर होती हैं या नीचे का हिस्सा लकवा मार जाता है। मरीज का मल-मूत्र पर भी कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। बच्चे के न्यूराल ट्यूब के पूरा बंद नहीं होने के कारण होता है। गर्भ में 20 हफ्ते के शिशु होने पर इस रोग का पता लगाया जा सकता है। रोग की पहचान होने पर डिलीवरी से पहले सर्जरी कर स्थिति सुधारने की कोशिश की जा सकती है।
गर्भावस्था के दौरान रखें ध्यान
फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ सविता बंसल बताती हैं कि, गर्भवस्था के दौरान महिला को खान-पान का ध्यान रखने की खास अवश्यकता होती है। फॉलिक एसिड युक्त फूड का सेवन प्रचुर मात्रा में करना चाहिए। जो महिलाएं मोटापे, डायबिटीज से पीडि़त होती हैं, उनके शिशु को यह रोग होने की संभावना ज्यादा होती है। खान-पान का सही तरीके से ध्यान रखकर शिशु का इस गंभीर बीमारी से बचाव किया जा सकता है। समय-समय पर मेडिकल चेकअप भी करवाएं।