क्या है बीमारी –
स्त्री रोग विशेषज्ञ के अनुसार टोकोफोबिया भावनात्मक समस्या है जिसका कारण तनाव है। इससे पीडि़त महिलाओं को लगता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान उसकी या होने वाले शिशु की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए वे बहाने बनाकर प्रेग्नेंसी टालती हैं। इसके कई कारण हैं-पहले बच्चे के दौरान बुरा अनुभव, बचपन में यौन शोषण या ज्यादा दर्द होने का डर आदि।
प्राइमरी प्रकार –
शादी के बाद जो महिला अब तक मां नहीं बनी व बनना चाहती हैं लेकिन प्रेग्नेंट होने से डरती हैं, तो यह स्थिति बनती है। इसकी वजह अपनी मां का दर्दभरा अनुभव, किसी महिला द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर बताया प्रेग्नेंसी का दर्द, साथ हुआ हादसा, फिल्मी दृश्य में प्रसव पीड़ा के डरावने चित्रण हैं। ये महिलाएं पति के पास जाने से कतराती हैं और गर्भ निरोधक दवा लेती हैं।
दो प्रकार का होता टोकोफोबिया –
वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ के अनुसार टोकोफोबिया दो तरह का होता है- प्राइमरी और सेकेंडरी।
सेकेंडरी प्रकार –
जब कोई महिला पहली प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत तकलीफ भोग चुकी होती है तो दोबारा प्रेग्नेंट होने के नाम से ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उसे लगता है कि प्रेग्नेंट होने पर उनकी या फिर उनके शिशु की मृत्यु हो जाएगी। जब भी पति से यौन संबंध बनाने का समय आता है, तो ऐसी महिलाएं डर जाती हैं और पास जाने से भी कतराने लगती हैं।
सीनियर साइकोलॉजिस्ट के अनुसार ऐसी महिलाओं की काउंसलिंग अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ से होनी चाहिए। उन्हें समझाएं कि सड़क पर दुर्घटनाओं का मतलब यह नहीं कि यहां चल रहा हर व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो। ऐसे ही प्रेग्नेंसी सामान्य प्रक्रिया है व प्रसव पीड़ा कम करने के कई आसान उपाय हैं।
ऐसी महिलाओं को सीजर, एपिड्यूरल पेन रिलीफ, वाटर बर्थ व हिप्नोबर्थ जैसी दर्द कम करने वाली प्रसव की तकनीकों के बारे में समझाया जाता है। काउंसलिंग के जरिए पीडि़त महिला को सही लाइफस्टाइल और खास सावधानियां अपनाने की सलाह देते हैं।