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मोबाइल पर बात करनी है तो चढ़ो पहाड़ या छत पर

समस्या-

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मोबाइल पर बात करनी है तो चढ़ो पहाड़ या छत पर

लक्ष्मण पटेल, डूंगरपुर. संचार क्रांति के युग में भी आदिवासी अंचल के अधिकांश गांवों में मोबाइल नेटवर्क सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। मोबाइल घर-घर क्या हर व्यक्ति के पास पहुंच चुका है। हर काम ऑनलाइन और हर अपडेट मोबाइल पर उपलब्ध है। ऐसे में उसकी उपयोगिता भी बहुत है, लेकिन नेटवर्क समस्या के चलते लोग घर की छत या गांव की पहाड़ी पर चढ़ कर नेटवर्क तलाशते हैं।


हेलो हां कौन? थोड़ा जोर से बोलो, सुनाई नहीं दे रहा है। मेढ़ी (छत) माथे चढ़ी ने बोलो। इस तरह के बोल रोजाना गांवों में सुनाई देते हैं। गांवों में मोबाइल पर नेटवर्क सिग्नल को एक डण्डा-दो डण्डा नेटवर्क के दौरान पर पुकारा जाता है। यानि मोबाइल पर नेटवर्क सिग्नल में कितनी खड़ी लकीर आ रही है, उसी के आधार पर मोबाइल हाथ में लिए सिग्नल तलाशते हुए लोग पहाड़ी पर चढ़ जाते हैं। बीएसएनएल ही नही बल्कि अन्य निजी कंपनियों के नेटवर्क भी सही तौर पर नहीं मिल पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह पहाड़ी क्षेत्र तथा पर्याप्त नेटवर्क सर्किट विकसित नहीं होना बताया जा रहा है।

कहने को तो घर-घर में मोबाइल है, लेकिन कई गांवों में मोबाइल भी लैण्डलाइन की तरह एक जगह पर फिक्स सा रहता है। घर के जिस कौने में नेटवर्क सिग्नल उपलब्ध हो, वहां खुंटी पर मोबाइल टांग कर रखा जाता है। जैसे ही किसी का फोन आए, मोबाइल लेकर छत पर जाकर या आसपास की पहाड़ी पर चढ़ कर बात की जाती है।

गांवों में पूरी तरह से मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध नहीं होने से उपभोक्ता मोबाइल पर इंटरनेट का उपयोग भी नही कर पा रहे हैं। कनेक्टिविटी के अभाव में यूजर्स नेट पेक का भी पूरा उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे में समयावधि खत्म होने के बाद पैसा खर्च कर दोबारा नेट पेक कराना पड़ता है।

से नेटवर्क सर्किट भी विकसित करना चाहिए।

इन गांवों में है अधिक समस्या

हथोड़, नवलश्याम, मोकरवाड़ा, सुन्दरपुर, ओड़ापाल, भेहणा, छापी, ओड़ा छोटा, नीलापानी पादरड़ी, माण्डवा भेराभाई, नालफला भेहणा, झाकोल, ओड़ा बड़ा, गडानाथजी, गामड़ी देवकी सहित जिले के दूरस्थ गांवों में नेटवर्क समस्या है।

-अजयकुमार, एसडीओटी, बांसवाड़ा