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रक्षा और कल्याण करते हैं क्षेत्रपाल दादा

भगवान क्षेत्रपाल को शिव पुत्र माना गया है। दानवों के आंतक को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने 64 क्षेत्रपालों को जन्म दिया था।

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सागवाड़ा-गलियाकोट मार्ग पर सागवाड़ा से नौ किलोमीटर दूर लोढ़ी काशी के रुप में प्रसिद्ध खडग़दा के मोरन नदी के किनारे अवस्थित क्षेत्रपाल मंदिर में प्रतिष्ठिïत भगवान क्षेत्रपाल की प्रतिमा ११वीं-१२वीं शताब्दी के होने का अनुमान है। रक्षाकर्ता देव के रुप में विख्यात क्षेत्रपाल भगवान का मंदिर पुरातन क्षेत्रपाल देवालय है। प्राचीन काल में राजा राज्य को संकटों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना करते थे। साथ ही क्षेत्रपाल राजवंशों के अनन्य उपास्य देव रहे हैं। यहां भगवान क्षेत्रपाल की आज्ञा लिए बगैर कोई कार्य प्रारंभ नहीं करने की परम्परा रही है। क्षेत्रपाल मंदिर जीर्णोद्धार व कायाकल्प के साथ देश के प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थलों में शामिल है। यहां वर्ष पर्यन्त दीन दुखियों सहित भक्तों और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

चतुर्भुज दिव्य प्रतिमा

गर्भगृह में पश्चिमोन्मुखी छह फीट ऊंची तथा ढ़ाई फीट विस्तार वाली चतुर्भुज दिव्य आभा युक्त प्रतिमा सात्विक व मनोहारी है। हाथों में शूल, डमरु, ढ़ाल व मुंड़ सुशोभित है। वहीं, स्वामी भक्ति के प्रतीक भैरव वाहन श्वान भी है। पिंगला निगट्ïटू के अनुसार क्षेत्रपाल को भगवान शिव का दस हजारवां हिस्सा माना जाने के कारण उन्हें कच्चुका, मुक्ता, निर्वाणी, सिद्ध, कपाली, बटूक व भैरव के नाम से भी जाना जाता है।

मेले की शुरुआत का श्रेय गोवद्र्धन विद्या विहार के संस्थापक पण्डित नंदलाल दीक्षित को जाता है। हनुमान जन्मोत्सव पर वर्ष 1967 से यहां हर साल दो दिवसीय मेला भरता है। मनोतियां लेने या छोडऩे के लिए श्रद्धा के श्रद्धालु पहुंचते हैं।


भगवान क्षेत्रपाल सिंदुर, तेल और चांदी से बना वागा धारण किए हुए हैं। भगवान क्षेत्रपाल को शिव पुत्र माना गया है। दानवों के आंतक को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने 64 क्षेत्रपालों को जन्म दिया था। इनमें शिव का रोद्र और भोले भंडारी का स्वरूप दिखाई देता है।

प्राच्य विरासतों के संरक्षण और संवद्र्धन के प्रभावों के साथ धर्म, अध्यात्म, कला, शिक्षा, साहित्य व संस्कृति के क्षेत्र में प्रख्यात खडग़दा के इस क्षेत्रपाल मंदिर में ही जैन प्राचीन जैन मंदिर भी है। मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पंडित नाथूराम पुत्र सुखराम भट्टï ने १९६४ में कराया। भट्ट के वर्षों के प्रयत्नों के बाद परिसर में कई अन्य कार्य भी करवाए गए। मंदिर के कलात्मक प्रवेशद्वार पर दायी ओर मंगल मूर्ति विनायक और बाई ओर महालक्ष्मी का देवालय है। वहीं, मुख्य द्वार के सामने भगवान शंकर का नर्मदेश्वर महादेव मंदिर, हनुमान, महालक्ष्मी व वडलिया महाराज की प्रतिमा हैं। परिसर में ही मनोरम उद्यान, यज्ञ मंडप, धर्मशाला एवं श्रद्धालुओं के लिए सुविधायुक्त भोजनशाला भी है। प्रत्येक पूर्णिमा एवं अमावस्या को यहां मेला भरता है। यहां प्रतिदिन प्रसाद वितरण के साथ ही जरूरतमंद लोगों को नि:शुल्क भोजन उपलब्ध कराया जाता है।