मातरोडीह के किसान डुगेश निषाद ने झुलसा रोग से फसल को बचाने के लिए तीन बार दवाई का छिड़काव किया था। इसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरी, उल्टा फसल बुरी तरह झुलस गया। इससे व्यथित होकर उसने आत्महत्या कर ली। माना जा रहा था कि किसान ने जिस कीटनाशक का उपयोग किया था वह अमानक अथवा नकली था। इसके बाद से बाजार में बिक रही दवाईयों की गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। क्योंकि इसमें प्रशासनिक अफसरों की बड़ी लापरवाही का खुलासा हुआ है।
कृषि विभाग के अफसरों के मुताबिक सीजन में 41 सैम्पल लेकर जांच के लिए लैब भेजा गया था, लेकिन इनमें से अब तक केवल 19 की रिपोर्ट आई है। शेष 22 सैम्पल की रिपोर्ट कब आएगी यह अफसर भी बता पाने की स्थिति में नहीं है। खास बात यह है कि जिन दवाईयों का सैंम्पल रिपोर्ट नहीं आई है, उसे भी दुकानदार किसानों को बेच चुके हैं।
नियम के मुताबिक हर सीजन में औसतन 10 फीसदी कीटनाशकों का सैम्पल लेकर जांच किया जाना चाहिए, लेकिन हर साल गिनती के सैम्पल से खानापूर्ति कर लिया जाता है। जिन दुकानों की शिकायतें मिलती है, केवल उन्हीं में जांच कर सैम्पल ले लिया जाता है। सैम्पल लेने के बाद रिपोर्ट आने तक विक्रय रोकने का भी प्रावधान नहीं है।
जिले के किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से भी खाद-बीज और कीटनाशकों की सप्लाई की जाती है। यहां भी अमानक सामग्री बिकने का खुलासा हो चुका है। इसी कृषि सीजन में 3800 क्विंटल अमानक बीज का मामला सामने आया था। जब तक बीज के अमानक होने की रिपोर्ट आई, तब तक कई किसानों ने उपयोग कर लिया था। डीडीए दुर्ग एसएस राजपूत ने बताया कि हर सीजन में खाद-बीज और कीटनाशकों की गुणवत्ता की जांच का नियम है। इस आधार पर इस साल 41 सैम्पल लिए गए थे। इनमें से 19 की रिपोर्ट आई है। सभी सैम्पल में गुणवत्ता सही पाई गई है। पिछले तीन दिनों से लगातार दुकानों की जांच की जा रही है। कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।