
What is more important RAM temple, Article 370, CAB or Falling Economy
नई दिल्ली।सिटीजन अमेंडमेंट बिल 2019 ( Citizen amendment Bill 2019 ) के शोर में देश की इकोनॉमी की गिरती हालत जैसे अहम मुद्दे बिल्कुल ही गायब हो गए है। साल 1991 में उदारीकरण के दौर ने भारत की डूबती इकोनॉमी को एक नई दिशा दी थी। राम मंदिर, CAB और Artcile 370 जैसे मुद्दे भी अहम है। लेकिन सरकार के लिए अभी मौजूदा दौर में जो सबसे बड़ी मुसीबत है वो है डूबती इकोनॉमी को संभालना, क्योंकि इससे सीधे आम आदमी की जेब पर असर पर पड़ा है।
सड़क से संसद तक चुप्पी का आलम
सड़क से संसद तक महंगाई, उत्पादन, नए रोजगार और इकोनॉमी पर सभी ने चुप्पी साध रखी है। एक ओर देश के उत्तर पूर्व राज्यों में लोग अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए सिस्टम के आंसू गैस और लाठियां सहन कर रहे हैं। वहीं संसद में विपक्ष के नेता कैब पर सरकार को हिटलरशाही बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। मगर ना तो देश की आम जनता और ना ही जनता के नुमाइंदे सरकार से यह पूछने को तैयार नहीं कि देश की खुदरा महंगाई दर ( retail inflation rate ) 40 महीने के उच्चतम स्तर पर कैसे पहुंच गई? देश का औद्योगिक उत्पादन दर ( industrial production growth ) लगातार तीसरे महीने निगेटिव में क्यों हैं? किसी भी देश की बेहतर स्थिति वहां के रोजगार आकंड़ों से पता चलती है। शायद यही वजह है कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में जब रोजगार के आकड़ों में कमी आती है, सरकार तुरंत चौकन्नी हो जाती है।
rbi की चिंता बरकरार
रोजगार के बाद किसी भी देश के लिए दूसरा सबसे अहम होता है देश का विकास दर। जो 6 साल से ज्यादा के निचले स्तर पर आ चुका है। देश का सबसे बड़ा बैंक रिजर्व बैंक भी इन आकड़ों को लेकर काफी चितिंत है और इसके लिए सरकार से आरबीआई के मतभेद कई बार खुलकर सामने भी आए हैं। पूर्व गवर्नर रघुराम राजन हो या उर्जित पटेल सबने सरकार को एक तरह से सचेत करने की कोशिश की। लेकिन उसके बावजूद भी आकड़ें साफ बयां कर रहे हैं कि अभी सरकार को इकोनॉमी के मोर्चे पर सबसे पहले सोचने की जरुरत है।
40 महीने के उच्चतम स्तर पर खुदरा महंगाई दर
खाद्य पदार्थों की कीमतें काफी बढ़ जाने की वजह से नवंबर में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 5.54 फीसदी हो गई। यह अक्टूबर में 4.62 फीसदी थी। वित्त मंत्रालय की ओर से आधिकारिक आंकड़ा गुरुवार को जारी किया गया है। इसी तरह से सलाना आधार पर पिछले महीने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई), पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में अधिक था। पिछले साल इसी महीने में खुदरा महंगाई 2.33 फीसदी थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीई) समीक्षाधीन माह में बढ़कर 10.01 फीसदी हो गई, जो अक्टूबर 2019 में 7.89 फीसदी था।
लगातार तीसरे महीने औद्योगिक उत्पादन निगेटिव में
मांग में कमी के कारण विनिर्माण गतिविधियों की खस्ताहाली के कारण देश के औद्योगिक उत्पादन में अक्टूबर में 3.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े बताते हैं कि उत्पादन में गिरावट की गति थोड़ी मंद हुई है, क्योंकि अक्टूबर की गिरावट 3.8 फीसदी रही, जो सितंबर 2019 के 4.3 प्रतिशत गिरावट से कम है।वार्षिक आधार पर समीक्षाधीन माह में फैक्टरी उत्पादन वृद्धि दर अक्टूबर 2018 में दर्ज 8.4 प्रतिशत के कहीं करीब नहीं ठहरती। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने कहा, "2011-12 के आधार वर्ष के साथ अक्टूबर 2019 के लिए आईआईपी का तात्कालिक अनुमान 127.7 है, जो अक्टूबर 2018 के स्तर की तुलना में 3.8 प्रतिशत कम है।" आंकड़े के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में अक्टूबर में 2.1 प्रतिशत की गिरावट आई।
आरबीआई ने भी दे दिए थे संकेत
वहीं महंगाई दर के आए आंकड़ों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पहले ही चेता दिया था। मौद्रिक नीति की समीक्षा में खुदरा महंगाई के बढऩे की बात कही थी और आगामी तिमाहियों में सीपीआई आधारित महंगाई में वृद्धि का अनुमान जताया था। खास बात तो ये है कि उन्होंने यह भी कह भी दिया था कि आने वाले महीनों में ब्याज दरों में कटौती करना आरबीआई के लिए काफी मुश्किल होगा। इस बार आरबीआई ने देश की जीडीपी का अनुमान 5 फीसदी लगाया है। वहीं सरकार दूसरी तिमाही में जीडीपी 4.5 फीसदी पहले ही बता चुकी है। ऐसे में कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
इकोनॉमी जरूरी या फिर कैब?
अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि देश की संसद से सड़क तक बहस किस पर पहले होनी चाहिए इकोनॉमी पर या फिर सिटीजन एमेंडमेंट बिल पर? देश के लिए पहले क्या जरूरी है इकोनॉमी या नागरिकता कानून? देश में पहले किस पर काबू पाया जाना जरूरी है बढ़ती महंगाई पर या फिर बाहर से देश में आने को आतुर शरणार्थियों पर? देश में क्या बढ़ाया जाना जरूरी है औद्योगिक उत्पादन या फिर देश में गैर मुस्लिम जनसंख्या? तमाम ऐसे सवाल है जो अब सरकार के सामने उठ रहे हैं? लेकिन उन्हें किसी ना किसी तरीके दबाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले धारा 370 बिल लाकर इसे दबाने का प्रयास किया गया। देशभर में हंगामा हुआ और महंगाई और गिरती इकोनॉमी का शोर घुटकर रह गया। उसके बाद राम मंदिर के निर्माण की गूंज में देश चरमरामी अर्थव्यवस्था का दर्द किसी को सुनाई नहीं दिया।
क्या ये आर्थिक मंदी नही ?
देश की सरकार के मंत्री गिरती इकोनॉमी को आर्थिक मंदी नहीं मान रही है। कई बार तो देश की वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण इस बात को कह चुकी हैं। वहीं कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी देश में आई मंदी से साफ इनकार कर दिया था। जबकि आंकड़ें कुछ और ही बयां कर रहे हैं। हाल ही में एशियन डेवेलपमेंट बैंक की ओर से 2019 -20 की की अनुमानित जीडीपी के आंकड़ों के साथ 2020-21 के भी अनुमानित आंकड़े पेश किए थे। जिसमें उन्होंने वित्त वर्ष 2020-21 के अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया है। मतलब साफ है कि देश में आर्थिक मंदी का असर एक और वित्त वर्ष रहने वाला है।
Updated on:
13 Dec 2019 05:46 pm
Published on:
13 Dec 2019 12:10 pm
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