
Gold Will 50 years old history be able to repeat, from Nixon to Trump
नई दिल्ली। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप और अस्थिरता का संबंध कितना गहरा है। एग्रेसिव लीडर के रूप में छाप छोड़ चुके डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान इकोनॉमी से लेकर क्रूड ऑयल, शेयर बाजार, सिल्वर आदि सभी की कीमत में अस्थिरता के दौर देखने को मिला है। किसी की कीमतें आसमान पर पहुंच गई तो किसी की कीमत रसातल में। बात अगर गोल्ड की करें तो ट्रंप कार्यकाल के दौरान करीब 50 साल के बाद सोने की कीमत में सबसे बड़ी तेजी देखने को मिली है। इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि 1972 में यूएस के प्रेसीडेंट बने रिचर्ड निक्सन के बाद सोना इतना महंगा हुआ हैै। वैसे रिटर्न में मामले में ट्रंप दौर में सोने ने निक्सन के दौर का लेवल नहीं तोड़ा है, लेकिन इस बात की संभावना है कि अगर ट्रंप दोबारा से यूएस के प्रेसीडेंट बनते हैं तो सोने के सभी रिकॉर्ड टूट जाएंगे।
निक्सन दौर में सबसे ज्यादा रिटर्न
अगर बात बीते 50 साल की करें तो रिचर्ड निक्सन के दौर में गोल्ड ने सबसे ज्यादा रिटर्न दिया था। इसका कारण था निक्सन की शॉकिंग इकोनॉमिक पॉलिसीज। जिसकी जह से डॉलर में हमेशा से दबाव देखने को मिला। जिसका असर सोने की कीमत में देखने को मिला। निक्सन के कार्यकाल में सोने में 48.74 फीसदी की तेजी देखने को मिली। जो उसके बाद अब तक किसी भी राष्ट्रपति के कार्यकाल में देखने को नहीं मिली है।
रिपब्लिकन डालते हैं सबसे ज्यादा प्रभाव
खास बात तो ये है कि अमरीका में जब-जब भी रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसीडेंट बने तब-तब सोने की कीमत में डबल डिजिट का फेरबदल हुआ। रोनाल्ड रीगन के दौर में सोना 12 फीसदी से ज्यादा उछला, तो उन्हीं के दूसरे कार्यकाल में सोने ने 19 फीसदी से ज्यादा का गोता भी लगाया। उसके बाद आए जॉर्ज बुश सीनियर कार्यकाल में सोने की कीमत ने करीब 16 फीसदी की गिरावट देखने को मिली। यानी निक्सन से लेकर जॉर्ज बुश सीनियर तक ( निक्सन के बाद आए डैमोक्रेट जेम्स कार्टर के कार्यकाल को छोड़ दें ) सोने के दाम में जबरदस्त अस्थिरता देखने को मिली है।
निक्सन से ट्रंप तक किस प्रेसीडेंट के दौर में सोने में मितना रिटर्न
| इलेक्शन ईयर | प्रेसीडेंट | पार्टी | गोल्ड में रिटर्न (फीसदी में) |
| 1972 | रिचर्ड निक्सन | रिपब्लिकन | 48.74 |
| 1976 | जेम्स कार्टर | डैमोक्रेटिक | - 4.06 |
| 1980 | रोनाल्ड रीगन | रिपब्लिकन | 12.50 |
| 1984 | रोनाल्ड रीगन | रिपब्लिकन | - 19 |
| 1988 | जॉर्ज बुश सीनियर | रिपब्लिकन | - 15.69 |
| 1992 | बिल क्लिंटन | डैमोक्रेटिक | - 5.80 |
| 1996 | बिल क्लिंटन | डैमोक्रेटिक | - 4.43 |
| 2000 | जॉर्ज बुश जूनियर | रिपब्लिकन | - 6.26 |
| 2004 | जॉर्ज बुश जूनियर | रिपब्लिकन | 4.97 |
| 2008 | बराक ओबामा | डैमोक्रेटिक | 3.41 |
| 2014 | बराक ओबामा | डैमोक्रेटिक | 5.68 |
| 2016 | डोनाल्ड ट्रंप | रिपब्लिकन | 8.63 |
| 2020 | डोनाल्ड ट्रंप (संभावित) | रिपब्लिकन | 26.62 |
डैमोक्रेट प्रेसीडेंट्स में नहीं दिखता है असर
वहीं डेमोक्रेटिक प्रेसीडेंट्स के दौर को देखें तो सोने की कीमतों में ज्यादा अस्थिरता देखने को नहीं मिलती हैं। आंकड़ों के अनुसार बिल क्लिंटन के दोनों कार्यकाल में सोना क्रमश: 5.80 फीसदी और 4.43 फीसदी की गिरावट पर रहा। जानकारों की मानें तो यह एक स्थिरता का प्रतीक है। इसमें आपको ज्यादा फेरबदल देखने को नहीं मिलता है। वहीं बराक ओबामा के दोनों कार्यकाल के दौर को देखें तो 3.41 फीसदी और 5.68 फीसदी भी स्थिर ही रहा था। उससे पहले निक्सन के बाद जेम्स कार्टर ने एक ही कार्यकाल पूरा किया था उस दौर में सोना 4 फीसदी की गिरावट के साथ स्थिर ही रहा था।
क्या ट्रंप दौर में टूटेगा निक्सन दौर का रिकॉर्ड?
सवाल यह है कि क्या ट्रंप दौर में सोना निक्सन दौर के रिकॉर्ड को तोड़ पाएगा? इसका जवाब देते हुए केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि मौजूदा समय में ग्लोबल इकोनॉमी अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। कोविड का असर अभी खत्म नहीं हुआ है। वहीं ट्रंप के दोबारा से राष्ट्रपति बनने की पूरी संभावना है। जिनके कार्यकाल में ट्रेड वॉर से जियो पॉलिटिकल टेंशन ज्यादा देखने को मिली है। ऐसे में सोना रिटर्न के मामले में अपने 50 साल पुराने रिकॉर्ड को तोडऩे में पूरी क्षमता रखता है। यह 100 फीसदी तक भी पहुंच सकता है।
यूएस इलेक्शन के दौरान में भारत में सोने की स्थिति
अगर बात भारत की करें तो यूएस इलेक्शन उसके एक हफ्ते के बाद और एक महीने के बाद की स्थिति में बड़ा फेरबदल देखने को मिला है। इसे आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं। 2004 में हुए इलेक्शन की बात करें तो वोटिंग डे वाले दिन सोने का भाव 6248 रुपए प्रति दस ग्राम था, तो चुनाव के एक हफ्ते के बाद 4.12 फीसदी तेज हुआ और एक महीने के बाद सोना करीब 8 फीसदी की बढ़त हासिल कर चुका था। उस समय जॉर्ज बुश सीनियर प्रेसीडेंट दोबारा से बने थे। जब ओबाना राष्ट्रपति बने तो उस दिन भारत में सोना 11,740 रुपए प्रति दस ग्राम था, एक हफ्ते के बाद दाम 0.99 फीसदी गिरे और एक महीने के बाद कीमत में 6.33 फीसदी का इजाफा देखने को मिला। ओबामा के दूसरे कार्यकाल में सोना 31,273 रुपए प्रति दस ग्राम पर पहुंच चुका था, लेकिन एक हफ्ते और महीने के बाद भी कीमतों में स्थिरता ही देखने को मिली। जबकि ट्रंप जब 2016 में चुने गए तो सोना 29,880 रुपए था, एक हफ्ते के बाद गिरावट 2 फीसदी और एक महीने में सोना 7 फीसदी तक सस्ता हो चुका था।
यूएस इलेक्शन के दौरान भारत में सोना के दाम में उतार या चड़ाव
| यूएस इलेक्शन डेट | चुनाव के दिन दाम ( रुपए प्रति दस ग्राम ) | एक हफ्ते के बाद बदलाव ( फीसदी में ) | एक महीने के बाद बदलाव ( फीसदी में ) |
| 2 नवंबर 2004 | 6,248 | 1.50 | 5.04 |
| 4 नवंबर 2008 | 11,740 | -0.99 | 6.33 |
| 6 नवंबर 2012 | 31,273 | 1.43 | -0.15 |
| 8 नवंबर 2016 | 29,880 | -1.87 | -7.04 |
क्योंकि रिपब्लिकन होते हैं एग्रेसिव प्रेसिडेंट
एजेंल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसीडेंट ( कमोडिटी एंड रिसर्च ) अनुज गुप्ता के अनुसार यह बहुत दिलचस्प बात है कि रिपब्लिकन प्रेसीडेंट आते ही सोने की कीमतों में अस्थिरता देखने को मिल जाती है। इसका कारण है उनका एग्रेसिव नेचर और इकोनॉमिक पॉलिसी। फिर चाहे वो रिचर्ड निक्सन का दौर हो या फिर रोनाल्ड रीगन का या अब डोनाल्ड ट्रंप के दौर में। क्लिंटन और ओबामा के टेन्योर में गोल्ड में अनसरटेनिटी नहीं थी। इस बात में कोई दोराय नहीं कि अगर ट्रंप दोबारा प्रेसीडेंट बनते हैं तो सोना के दाम में 100 फीसदी का इजाफा हो सकता है।
Updated on:
01 Oct 2020 11:19 am
Published on:
01 Oct 2020 11:13 am
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