
Secularism beats Radical Nationalism in Delhi
नई दिल्ली। Radical Nationalism हिंदी में इसका अनुवाद करें तो इसका मतलब उग्र राष्ट्रवाद होता है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रचार के आखिरी 10 दिनों में देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी ने इसी उग्र राष्ट्रवाद और आतंकवाद और हिंदु-मुस्लिम का खेल खेलकर चुनाव लड़ा। आज नतीजों के दिन बीजेपी के एजेंडे का हश्र सामने है। दिल्ली ने इस Radical Nationalism को पूरी तरह से नकार दिया। दिल्ली ने देश को ही नहीं पूरी दुनिया में रहने वाले भारतीयों को बता दिया कि वो संविधान का सम्मान करती है। संविधान के प्रस्तावना में दर्ज धर्म निरपेक्षता का सम्मान करती है। दिल्ली सेक्यूलर है, दिल्ली के दिल में Secularism है। दिल्ली के चुनावों के नतीजों ने आने वाले बाकी राज्यों के चुनावों को दिशा देने की कोशिश की है। दूसरे राज्यों के वोटर्स को अच्छे से समझा दिया है कि केंद्र के मुद्दे राज्य में नहीं चलेंगे। विकास, काम और धर्मनिरपेक्षता ही किसी भी पार्टी को आगे चला सकती है।
उग्र राष्ट्रवाद हुआ धराशायी
चुनाव के नतीजों के साफ हो गया है दिल्ली की जनता को उग्र राष्ट्रवाद का कांसेप्ट बिल्कुल भी रास नहीं आया। दिल्ली चुनाव के लिहाज से आतंकवाद और आतंकवादी से दिल्ली की जनता उतनी ही दूर है, जितनी जमीन और आसमान। इससे पहले दिल्ली की जनता राष्ट्रवाद पर बीजेपी को 2014 के मुकाबले सातों सीटों पर बेहतर 2019 में अच्छी स्थिति में जिता चुकी है। इस बार बीजेपी का राष्ट्रवाद का मुद्दा बिल्कुल भी काम नहीं आया। साथ ही दिल्ली की जनता ने यह भी संदेश देने की कोशिश की कि अगर दूसरे राज्यों में बीजेपी ने राष्ट्रवाद पर अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया तो नतीजे इसी तरह के सामने आएंगे।
हिंदू-मुस्लिम कार्ड फ्लॉप
वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर चला गया हिंदू-मुस्लिम कार्ड इस बार पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ। देश में कश्मीरी हिंदुओं की बात की गई। मुस्लिम वोटर्स को विलेन के तौर पर दिखाने का प्रयास किया गया। कोशिश की गई हिंदुओं और मुस्लिम के वोट को पूरी तरह से बांट दिया जाए। बीजेपी नेताओं की ओर से मुस्लिम समुदाय को बलात्कारी तक कह दिया गया। बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के बयानों को कौन भुला सकता है। शाहीन बाग के प्रदर्शन को लेकर जिस तरह की बयानबाजी देश के गृहमंत्री से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्री द्वारा की गई, जिसकी वजह से दिल्ली की जनता ने इसे पूरी तरह से नकार दिया।
सीएए और एनआरसी में हिंदुत्व को महत्व
मौजूदा समय में देश में सीएए और एनआरसी का विरोध चल रहा है। दिल्ली के चुनावों में भी इसका असर साफ दिखाई दिया। बीजेपी ने सीएए और एनआरसी के बहाने दिल्ली चुनावों में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे रखा। केंद्र के किसी नेता ने सीएए और एनआरसी को लाने के पीछे मकसद को स्पष्ट नहीं किया। इसके विपरीत देश को हिंदुवादी बनाने और मुस्लिमों को पाकिस्तान भेजने के बयान दिए जाते रहे। खास बात तो ये रही कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मौन लगातार इन बयानों को समर्थन देता रहा। जिसका नतीजा यह निकला कि सीएए और एनआरसी के मुद्दे को भी दिल्ली की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया।
सॉफ्ट Secularism पर मुहर
पूरे चुनाव में बीजेपी ने संविधान की प्रस्तावना में दर्ज धर्मनिरपेक्ष को अलग रखते हुए अलग तरीके की छवि को उकेरने की कोशिश की। यह बताने का प्रयास किया कि अगर आम आदमी पार्टी या कांग्रेस सत्ता में आती है तो दिल्ली का माहौल पूरी तरह से खराब हो जाएगा। दिल्ली की लड़कियां सुरक्षित नहीं रहेंगी। वहीं इसके विपरीत आम आदमी पार्टी ने अपने काम को सामने रखा और अपनी छवि को सेक्युलर रखा। अरविंद केजरीवाल ने ना तो शाहीन बाग पर ज्यादा बयानबाजी की और हिंदुवादी छवि वाले नेताओं पर। जिसका असर नतीजों में भी देखने को मिला। दिल्ली की जनता ने सॉफ्ट Secularism पर अपनी मुहर लगा दी।
क्या Secular Party का नया विकल्प बना आप
नतीजों के बाद एक सवाल खड़ा हो गया है। क्या आम आदमी पार्टी सेक्युलर पार्टी का नया विकल्प बन गई है। वैसे इस तमगे को कांग्रेस अपने साथ जोड़े रखती है, लेकिन दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस की स्वीकार्यता पूरी तरह से खत्म हो गई है। आम आदमी पार्टी को हिंदु-मुस्लिम दोनों का वोट भरपूर मात्रा में मिला है। आने वाले सालों में आम आदमी की जड़ों को और ज्यादा मजबूतह मिलनी तय है। ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि आम आदमी पार्टी एक नई और मजबूत सेक्युलर पार्टी बनकर उभरी है।
Updated on:
11 Feb 2020 03:18 pm
Published on:
11 Feb 2020 03:02 pm
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