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अरुण कुमार अग्रवाल बने आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के नए कुलपति

कुलाधिपति त्रिपाठी ने प्रो. अरुण कुमार अग्रवाल को आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना का नया कुलपति नियुक्त किया है।

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Jameel Ahmed Khan

Sep 20, 2017

Aryabhatta Knowledge University

Aryabhatta Knowledge University

पटना। बिहार के राज्यपाल एवं कुलाधिपति केशरीनाथ त्रिपाठी ने पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के प्रो. अरुण कुमार अग्रवाल को आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना का कुलपति नियुक्त किया है। राजभवन के आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को बताया कि कुलाधिपति त्रिपाठी ने 'सर्च कमेटी' की अनुशंसा के आलोक में पैनल में उल्लिखित व्यक्तियों के संबंध में राज्य सरकार के साथ प्रभावकारी एवं सार्थक विचार-विमर्श के बाद पीएमसीएच में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण कुमार अग्रवाल को आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना का नया कुलपति नियुक्त किया है। नवनियुक्त कुलपति अग्रवाल का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा।

नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति में अनियमितता
नई दिल्ली। बौद्धिक, दाशर्निक एवं आध्यात्मिक अध्ययन के अंतरराष्ट्रीय केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति और विशेष कार्याधिकारी की नियुक्ति और वेतन में अनियमितताएं बरतीं गईं तथा अब तक विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण कार्य नहीं शुरू हुआ। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश ताजा रिपोर्ट के अनुसार में अब तक विश्वविद्यालय नियमित संचालक मंडल का गठन नहीं किया गया तथा अकादमिक स्टाफ की नियुक्ति के लिए नियम भी नहीं बनाए गए हैं।

विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का पंजीकरण भी अनुमान से बहुत कम रहा है। विदेश मंत्रालय के तहत बिहार के राजगीर में विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में बाकायदा एक कानून पारित करके की गई। कानून की धारा 15(1) के अनुसार विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति विजिटर यानी राष्ट्रपति संचालक मंडल की सिफारिश पर कम से कम तीन लोगों के एक पैनल में से करेगा। कैग ने अपनी पड़ताल में पाया कि संचालक मंडल की बजाय नालन्दा परामर्शदाता समूह ने कुलपति के रूप में तीन के बजाय डॉ गोपा सभरवाल के रूप में एक ही व्यक्ति के नाम की सिफारिश कर दी।

परामर्शदाता समूह नवंबर 2010 में संचालक मंडल में बदल दिया गया था और उसे कुलपति के नामों की सिफारिश की शक्ति भी दी गई, लेकिन परामर्शदाता समूह ने यह शक्ति मिलने से चार माह पहले ही अगस्त 2010 में डॉ सभरवाल के नाम की सिफारिश कर दी थी। इस प्रकार कुलपति के रूप में डॉ सभरवाल की नियुक्ति में अनियमितता बरती गई। इसके बाद संचालक मंडल ने बिना किसी लिखित रिकॉर्ड के मनमाने तरीके से उनका वेतन दो लाख रुपए प्रति माह से बढ़ाकर ३.५ लाख रुपए कर दिया।