नियम में बदलाव के कारण घटा नामांकन
नियम में बदलाव के कारण जिस वार्ड में बच्चा रहता है या एक किमी. क्षेत्र में कोई सरकारी या अनुदानित स्कूल है तो वहीं पर दाखिला लेना चाहिए। भले ही माता-पिता अपने बच्चे का दाखिला सरकारी स्कूल में नहीं कराना चाहते हों, फिर भी उन्हें आरटीई के तहत निजी स्कूल में दाखिला लेने की अनुमति नहीं है। इसके चलते अधिकांश अभिभावक आरटीई के तहत आवेदन नहीं कर रहे हैं। बिना नियम जाने अगर सरकारी स्कूल होने पर भी आवेदन में निजी स्कूल को तरजीह दी गई है, तो ऐसे आवेदन अस्वीकृत हो रहे हैं।निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें आरक्षित
हुब्बल्ली ग्रामीण क्षेत्र शिक्षा अधिकारी उमेश बम्मक्कनवर ने बताया कि कानून के मुताबिक निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें आरक्षित की जाती हैं परन्तु अगर कोई सरकारी या अनुदानित स्कूल के होने पर भी बच्चों को वहां दाखिला नहीं लेकर किसी निजी स्कूल में दाखिला लेते हैं, तो सरकार को भारी मात्रा में फीस का भुगतान करना पड़ता है। इसके चलते पड़ोसी स्कूल की अवधारणा पिछले कुछ वर्षों में बदल गई है।सरकारी स्कूलों में ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू
उन्होंने बताया कि एक बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक किमी. पार नहीं करना चाहिए यही सरकार की मंशा है। इस कारण अनुमति दी गई थी। साथ ही अबिभावक भी चाहते हैं कि उनके बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा मिले। सरकारी स्कूलों में ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू हो गई है, जिससे सुविधा हुई है।आरटीई को लेकर जागरूक किया
आरटीई को लेकर जागरूक किया गया है। अभिभावक निजी स्कूल को प्राथमिकता देते हैं। अगर सरकारी स्कूल है तो वहीं पर दाखिला लेना चाहिए।एस.के. माकन्नवर, आरटीई, नोडल अधिकारी
सरकारी स्कूलों में कमियां ही ज्यादा
सरकारी स्कूलों में कमियां ही ज्यादा हैं। सरकार निजी क्षेत्र की लॉबिंग के आगे झुक कर एक तरफ अनुमति दे रही है और दूसरी तरफ इसे छीन रही है।–बसवराज एस., राज्य इकाई पदाधिकारी, एसएफआई
नुकसान हो रहा है
सरकार निजी स्कूलों को आरटीई शुल्क के भुगतान में देरी कर रही है। इससे संस्थाओं को नुकसान हो रहा है।जयप्रकाश टेंगिनकाई, अध्यक्ष, धारवाड़ जिला अनुदान रहित स्कूल प्रबंधन बोर्ड
धारवाड़ जिले में आरटीई की जानकारी
वर्ष — आरक्षित सीट — नामांकन
2022 — 422 — 2302023 — 459 — 246
2024 — 574 — 302