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बिना इंटरनेट सेवा के मुश्किलें बढ़ जाती हैं, आधीरात को कई छात्र भागे, Bangladesh में पढ़ाने वाले भारतीय छात्रों ने सुनाई आपबीती   

Indian Students In Bangladesh: 15 जुलाई को बांग्लादेश में माहौल गंभीर हो गया, वहां प्रोटेस्ट शुरू हो चुके थे। उस दिन 12 बजे ही हमें क्लास छोड़ने के लिए कहा गया।

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Indian Students In Bangladesh

Indian Students In Bangladesh: बांग्लादेश में अभी जो कुछ भी हो वो किसी से छुपा नहीं है। आरक्षण को लेकर शुरू हुई हिंसा ने धीरे धीरे भयावह रूप ले लिया। फिर वहां की पूर्व प्रधानमंत्रीशेख हसीनाने रातों रात देश छोड़ दिया। बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया। लेकिन इन सब के बीच भारत के छात्र जो वहां पढ़ने गए थे, उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा। भारत से बड़ी संख्या में छात्र MBBS की पढ़ाई करने के लिए बांग्लादेश जाते हैं। एक अनुमानित संख्या के अनुसार, हर साल करीब 10 हजार भारतीय छात्र MBBS के लिए बांग्लादेश जाते हैं। ऐसे में हमने कुछ भारतीय छात्रों से संपर्क किया जो बांग्लादेश में पढ़ते हैं।

पढ़ाई करने गए छात्र ने सुनाई आपबीती (Bangladesh)

बांग्लादेश में पढ़ने वाले अरमान नाम के छात्र ने हमसे बातचीत में कहा कि वे बिहार (Bihar News) के मुजफ्फरपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि भारत में कम मेडिकल सीटें होने के कारण यहां एडमिशन मिलना मुश्किल रहता है। वहीं यूक्रेन और रसिया का पैटर्न अलग होता है। ऐसे में वे MBBS की पढ़ाई के लिए बांग्लादेश गए थे। लेकिन किसे पता है था कि वहां के हालात ऐसे हो जाएंगे। अरमान ने बताया कि स्थिति खराब होने लगी थी इसलिए वे 22 जुलाई को ही भारत लौट आए थे। मैं 10 जुलाई को भारत से बांग्लादेश गया ही था। 15 जुलाई को मौहाल गंभीर हो गया, वहां प्रोटेस्ट शुरू हो चुके थे। उस दिन 12 बजे ही हमें क्लास छोड़ने के लिए कहा गया। 17 को इंटरनेट सेवा बंद हो गई थी। वहीं अगले दिन वाइफा काट दिया गया।

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बांग्लादेश में पढ़ने का बड़ा कारण है 'कम दूरी' और 'स्टूडेंट वीजा' (Indian Students)

अरमान ने कहा कि बांग्लादेश, नेपाल के बाद भारत के सबसे करीब है। वहां के खानपान और रहन सहन में खास अंतर नहीं होता है। बांग्लादेश में मुख्यत: मछली और मीट खाया जाता है। साथ ही शाकाहारी भोजन की उपलब्धता में कोई समस्या नहीं होती है। ऐसे में भारतीय छात्रों (Indian Students) के लिए वहां रहना आसाना होता है। अरमान ने कहा अन्य देशों के मुकाबले भाषा भी आसान है। वीजा लगाने की प्रक्रिया भी आसान है।

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बता दें, अरमान बांग्लादेश के कॉलेज में पढ़ते हैं और यह उनका फाइनल ईयर है। उनके कॉलेज में 50 प्रतिशत सीटें बंग्लादेशी स्टूडेंट के लिए रिजर्व हैं। वहीं अन्य 50 प्रतिशत सीटों पर 40 प्रतिशत भारतीय स्टूडेंट हैं और बाकी बचे 10 प्रतिशत सीटों पर नेपाल के स्टूडेंट हैं। अरमान ने कहा कि बांग्लादेश में ज्यादातर कश्मीर के छात्र जाते हैं। वहीं उन्होंने बताया कि उनके बैच में करीब 50-60 भारतीय स्टूडेंट्स हैं।

परिवार वालों से बात करना मुश्किल हो गया था

वहीं एक अन्य छात्र मुस्तफ़िज़ूर नेपत्रिकासे बातचीत में कहा कि जैसे ही प्रोटेस्ट शुरू हुए थे हमलोग परेशान हो गए थे। कुछ छात्रों ने आधीरात में घर जाना शुरू कर दिया क्योंकि आधीरात के समय घर जाना सुरक्षित होता है। भारतीय पासपोर्ट दिखाने के बाद भारतीय छात्रों को आसानी से जाने को मिल जाता है। इंटरनेट और वाइफा कनेक्शन बंद होने के कारण परिवार वालों से बात करना मुश्किल हो गया। हालात बदतर हो जाने पर कई छात्रों ने अपने माता-पिता को इंटरनेशनल कॉल किया और फ्लाइट टिकट का इंतजाम करने के लिए कहा। लेकिन भारत से टिकट नहीं हो रहे थे। ऐसे छात्र जो बांग्लादेश के एयरपोर्ट पर जा रहे थे, वही दूसरों के लिए भी टिकट बुक कर लेते थे।

दूर देश से आए छात्रों के लिए ऐसी स्थिति बहुत भयावह होती है (Indian Students)

मुस्तफ़िज़ूर जिस कॉलेज में पढ़ते हैं, वो वहां के अस्पताल में इंटर्न के रूप में सेवा दे रहे हैं। वे मूल रूप से असम के रहने वाले हैं। बता दें, भारत की तरह बांग्लादेश में भी एमबीबीएस (MBBS In Bangladesh) का कोर्स 5 साल का होता है और एक साल का इंटर्नशिप अनिवार्य है। मुस्तफ़िज़ूर ने बताया, “अगर सारे इंटर्न छोड़कर चले गए तो अस्पताल में ड्यूटी कौन करेगा। ऐसे में वे और कई बांग्लादेशी इंटर्न अस्पताल में बिना इंटरनेट सेवा के काम कर रहे थे।” उन्होंने कहा कि किसी भी छात्र के लिए ये बहुत ही भयावह स्थिति होती है जब वे दूर देश में पढ़ने आए हों और किसी कारणवश वहां के हालात खराब हो जाएं और छात्र अपने माता-पिता से संपर्क नहीं कर पाएं।