
सिद्धार्थ सिहाग
Motivational Story आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे प्रशासनिक अधिकारी की जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर न सिर्फ मंजिल पाई बल्कि ऐसे ही समकक्ष अनुभव भी साथ में लिए। सरकारी नौकरी पाना ही खुद एक ओलिंपिक मैडल की भांति हो गया है उसमें भी सिविल सेवा जैसी नौकरी हासिल करना एक बड़ी कामयाबी होती है। बात कर रहे हैं एक ऐसे ही आईएएस ऑफिसर की जिन्होंने मंजिल न मिलने तक विकल्प चुना और उनके साथ – साथ मंजिल पाने की कोशिश भी जारी रखी। दोस्तों जीवन में संतुष्टि और जिद दोनों में बहुत फर्क है कुछ हासिल करना और एक अपनी इच्छानुसार पाना बड़ा मुश्किल है। विकल्प मिलने पर ख़ुशी होती है लेकिन दिल में जज्बा मंजिल पाने का होना चाहिए। विकल्प को चुनो और स्वीकार करो, मगर जब तक मंजिल न मिले मेहनत करते रहो।
आज हम आपको बता रहे हैं हरियाणा में हिसार जिले के एक छोटे से गांव सिवानी बोलान में जन्मे सिद्धार्थ सिहाग जिन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई पंचकुला में की। सिहाग की पत्नी रूकमणि सिहाग भी आईएएस है जो वर्तमान में डूंगरपुर जिला परिषद CEO से बूंदी में कलेक्टर बनाया गया है। सिद्धार्थ सिहाग के पिता दिलबाग सिंह हरियाणा में चीफ टाउन प्लानर से सेवानिवृत हुए हैं उनका छोटा भाई सिद्धांत दिल्ली जज है।
सिद्धार्थ सिहाग की पढाई और उनके आईएएस बनने तक का सफर युवाओं के लिए बाउट प्रेरणादायक है। इनकी आखिरी मंजिल और दिल में जज्बा था कि मैं आईएएस ऑफिसर बनकर समाज की सेवा करूं। इसके लिए इन्होने मेहनत की लेकिन सभी तरह की परीक्षा में भाग लिया। सभी प्रतियोगी परीक्षा में अपनी तैयारी का आंकलन करना भी एक मंजिल तक पहुँचने का हिस्सा था। आईएएस बनने तक सफर से पहले इन्हें न्यायिक सेवा का रास्ता मिला जिसके बाद सिविल सेवा में चयन हुआ और रैंकिंग कम होने के चलते पुलिस सेवा में आए लेकिन मंजिल तो भारतीय प्रशासनिक सेवा ही थी। मंजिल पाने के लिए तैयारी लगातार चल रही थी और नौकरी भी।
How to get success
‘अगर आप एक लक्ष्य की ओर हार्डवर्क के साथ परीक्षा की तैयारी करते हैं तो आप मजिल को जरूर हासिल करेंगे, आप चाहे जो सोच लें वह सक्सेस आपको जरूर मिलेगी। सिद्धार्थ सिहाग ने कॉलेज में आने के बाद ही ठान लिया था कि प्रशासनिक अधिकारी ही बनना है, इसके लिए बहुत मेहनत की। सिद्धार्थ सिहाग स्कूलिंग के बाद पंचकुला से सीधे हैदराबाद गए।
सिद्धार्थ सिहाग के अनुसार दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा पास करने के बाद देहली के सिविल जज मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट पर चयन हो गया। ट्रेनिंग कर ही रहा था कि आईएएस का परिणाम आ गया और 148वीं रैंक मिली। मुझे आईपीएस कैडर मिला और मैं नेशनल पुलिस एकेडमी हैदराबाद गया। आईपीएस की ट्रेनिंग के साथ ही आईएएस बनने का सपना नहीं छोड़ा और उसकी तैयारी साथ में जारी रखी। आईएएस की परीक्षा पूरी तैयारी के साथ दी और मुझे 148 से सीधे 42वीं रैंक मिली। इसके लिए मैंने कोई कोचिंग नहीं की। नियमित रूप से पढ़ाई जरूर की।
Sarkari Naukari
तीनों ही कॉम्पीटिशन के लिए किसी भी प्रकार की कोचिंग नहीं की। आईएएस की तैयारी के दौरान इंटरनेट से पुराने आईएएस के अनुभव जरूर लिए। वर्धा के तत्कालीन कलक्टर के ब्लॉग से भी नोट मददगार रहे और बाकी पूरा फोकस पढ़ाई पर। आज के दौर में सामान्य ज्ञान पर पूरा फोकस होना चाहिए। प्रतियोगी परीक्षा में सबसे अहम् और महत्वपूर्ण पार्ट सामान्य ज्ञान है जिसमें अपनी मजबूत पकड़ के साथ परीक्षा में कामयाबी हासिल की जा सकती है। वर्तमान में उदयपुर नगर निगम के कमिश्नर और स्मार्ट सिटी सीईओ से उन्हें नई अशोक गहलोत सरकार में झालावाड़ कलेक्टर लगाया है।
Published on:
26 Dec 2018 02:11 pm
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