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Motivational Story: सुई-धागे को हथियार बनाकर लड़ी रूमा, देश-विदेश में बनाई पहचान

रूमादेवी ने ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से जुड़कर रेगिस्तान में हस्तशिल्प का काम करने वाली करीब 22000 महिलाओं को जोड़ते हुए रोजगार व स्कील डवलपमेंट का कार्य किया। कशीदे के इस कार्य को फैशन के रैंप तक ले गई। 2019 में प्रतिष्ठित पुरस्कारों से ख्याति देश-विदेश तक पहुंची हैं।

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Motivational Story: सुई-धागे को हथियार बनाकर लड़ी रूमा, देश-विदेश में बनाई पहचान

Motivational Story

बाड़मेर के छोटे से गांव रावतसर की 32 वर्षीय रूमादेवी ने वर्ष 2019 में नारी शक्ति पुरस्कार (Nari Shakti Award), जमनादेवी बजाज पुरस्कार (Jamnadevi Bajaj Award) आदि सम्मान लेकर देश-विदेश में परचम लहराया हैं। रूमादेवी आने वाले दिनों में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) में लेक्चर (Lecture) देगी। रूमा देवी बाड़मेर (Barmer) के रावतसर गांव में 8वीं पास है। उन्होंने ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान (Rural development and consciousness institute) से जुड़कर रेगिस्तान में हस्तशिल्प (Handicrafts in the desert) का काम करने वाली करीब 22000 महिलाओं को जोड़ते हुए रोजगार व स्किल डेवलपमेंट (Employment and Skill Development) का कार्य किया। कशीदे (Kashida) के इस कार्य को फैशन के रैंप (Fashion ramps) तक ले गई। 2019 में प्रतिष्ठित पुरस्कारों से ख्याति देश-विदेश तक पहुंची हैं।

सफलता पाने का जुनून हो तो मुसीबतों से भी राह निकल जाती है


संदेश: रूमादेवी यहीं संदेश देना चाहती है कि सफलता पाने का जुनून हो तो मुसीबतों से भी राह निकल जाती है।
संघर्ष: रूमादेवी ने जीवन-यापन के के लिए कशीदाकारी को चुना। सुई धागे से आजीविका के लिए सफर की शुरुआत की। उन्होंने हस्तशिल्प के क्षेत्र में मुकाम हासिल किया। वह नारी शक्ति का उदाहरण है।