कोरोनाकाल में शिक्षा एक और बदलता हुआ स्वरूप सामने आया है। विद्यार्थियों को जहां शिक्षा के लिए विद्यालय जाना पड़ता था वहीं आज विद्यार्थी मोबाइल या लैपटॉप पर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
पढ़ाई में रटनतोता की जगह अगर हम उसे प्रैक्टिकल के रूप में समझाएं तो आसानी से याद हो जाता है और जब पढ़ाई के कोर्स को घर की एक्टिविटी से जोड़ दें तो यह बच्चों के सीधे जेहन में बैठ जाती है। बस जरूरत है तो पढ़ाने का खास तरीका, बच्चों के प्रति प्रेम और उन्हें समझने की। एक बार बच्चों में संस्कार भावना पैदा हो जाए तो फिर उनकी उन्नति कभी नहीं रुक सकती। कुछ ऐसा ही केंद्रीय विद्यालय से सेवानिृवत्त प्राइमरी कक्षा की शिक्षिका विद्या शर्मा ने किया है। इवीएस जैसे विषय को पढ़ाते-पढ़ाते उन्हें ऐसी कई टेक्निक अपनाई, जिससे बच्चों की पढ़ाई आसान हुई तो साइंस जैसे विषय भी सरल लगने लगे। शर्मा का कहना है कि पढ़ाई की पहली नींव प्राइमरी शिक्षा है। नवंबर १९९९ में सेंट्रल स्कूल में पढ़ाने आई, तब से ही प्राइमरी बच्चों में संस्कार के साथ, पढऩे के प्रति दिलचस्पी, अनुशासन और समझने-जानने के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने का काम किया। पढ़ाई के हर विषय को घर में होने वाली एक्टिविटी से जोड़ा। बच्चों को बताया कि कैसे घरों के गमले में हम एक बीज बोते हैं, खाद और पानी देते हैं तो वह बढ़कर पौधा और फिर फूल खिलते हैं। बचपन से सीखने की ललक हो जाए तो उनका भविष्य हमेशा उज्जवल होता है। बच्चों के साइंस जैसे विषय के प्रति जोडऩे पर शर्मा को रमन शताब्दी पर सरकार की और साइंस डेवलपमेंट के लिए पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
अगर आप शिक्षक हैं तो आपको बच्चों से दिल जुडऩे की जरूरत है। उनकी कमियां, अच्छाई, आदतों से आपको सीधे जुडऩे होगा। जब तक एक शिक्षक में अपने विद्यार्थियों के बारे में पता नहीं होगा वह उसे अच्छा विद्यार्थी नहीं बना सकेगा। शर्मा के मुताबिक उन्हें ३३ वर्ष की नौकरी में हर दिन विद्यार्थियों को आत्मीयता के साथ पढ़ाया।