हम करीब-करीब पिछले 40-50 साल से गरीबी हटाओ, इस बात को सुनते आ रहे हैं। हमारे देश में चुनावों में भी गरीबों का कल्याण करने वाले भाषण लगातार सुनने को मिलते हैं। हमारे यहां राजनीति करते समय कुछ भी करते हो लेकिन सुबह-शाम गरीबों की माला जपते रहना, ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा से जरा बाहर आने की जरूरत है अब तक जितने प्रयोग हुए हैं, उन प्रयोगों से जितनी मात्रा में परिणाम चाहिए था, वो देश को मिला नहीं है। गांवों में आज भी बिजली नहीं है, गरीब बच्चे शिक्षा से महरूम हैं।